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________________ मोसवाल जाति का इतिहास म्युनिसिपल बोर्ड में सरस्म है। शिक्षा तथा दूसरे सार्वजनिक कार्यों में आप भाग लेते रहते है। भान्दक नामक स्थान में भद्रावती जैन गुरुकुल नामक जो संस्था खोली गई है उसके पास सभापति हैं। हिंगनघाट के जैन "महावीर मण्डल" के माप सभापति रहे हैं। कांग्रेस के कार्यों में भी आप बहुत दिलचस्पी से भाग लेते हैं। आप शुद्ध स्वदेशी वस्त्र धारण करते हैं। इतनी बड़ी फर्म के मालिक होने पर भी आप अत्यन्त निरभिमान और सादगी प्रिय सजन है। आपका जन्म संवत् १९५४ में हुभा है। आपके इस समय फूलचन्दजी नामक एक पुत्र हैं। सेठ धनराजजी के नाम पर बंशीलालजी बीकानेर से दत्तक लाये गये हैं। आपका जन्म संवत् १९६५ की श्रावण सुदी १० को हुभा। आप भी बड़े विवेकशील नवयुवक हैं। इस समय आप स्थानीय महावीर मण्डल के सभापति तथा मोतीज्ञान भण्डार के व्यवस्थापक हैं । आप प्रायः सभी सार्वजनिक कामों में भाग लेते रहते हैं। सेठ धीरजी चांदमल कोचर का खानदान, सिकन्दराबाद ___फलौदी के निवासी कोचर मूता (रुपाणी कोचर ) शोभाचन्दजी के पुत्र धीरजी सं० १८९८ में फलौदी से हैदराबाद गये तथा वहाँ आपने लेनदेन शुरू किया। इस सिलसिले में आप फौजों के केम्पों के साथ २ काबुल और उस्मानिया तक की मुसाफिरी कर आये थे। आप बहुत बहादुर तथा साहसी पुरुष थे। आपने अपने पुत्र चांदमलजी का सं० १९२९ में सिंकदराबाद में सराफी की दुकान लगाई जिसका कारोवार चांदमलजी भली प्रकार चलाते रहे। श्रीयुत चांदमलजी का संवत् १९४९ में स्वर्गवास हुआ। इनके नि:संतान मरने पर सेठ धीरजमलजी ने चांदमलनी के नाम पर संवत् १९५५ में सूरजमलजी को दत्तक लिया। इस प्रकार भी सूरजमलजी अपने पितामह के साथ दुकान का कार्य भार सम्हालने लगे। धीरजमलजी का स्वर्गवास संवत् १९५७ में हो गया। - धीरजमलजी के पश्चाप सेठ सूरजमलजी ने इस दुकान के कारवार तथा इज्जत को बहुत बदाया। आपकी दुकान सिंकदाबाद में (दक्षिण) मार्गेज तथा बैङ्किग का व्यापार करती है तथा वहां के म्यापारिक समाज में अच्छी मातवर मानी जाती है। इसी प्रकार फलौदी में भी आपका घर मातवर समझा जाता है। ___सेठ सूरजमलजी ने व्यापार की तरक्की के साथ दान धर्म के कार्यों की ओर भी अच्छा लक्ष्य रक्खा। आपकी ओर से पाँवा पुरीजी में एक धर्मशाला बनवाई गई है। इसी प्रकार कुंडलजी, कुल पाकजी आदि स्थानों में भी आपने कोठरियाँ बनवाई हैं। मद्रास पांजरापोल, शांतिनाथजी का देरासर
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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