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________________ पृष्ठाङ्क [ १७ ] अध्याय प्रधानविषय वर्णों का प्रायश्चित्त, स्नान का विधान, अजिन (मृगचर्म), मेखला छोड़ने पर ब्रह्मचारी के पुनः संस्कार (५-८)। आग्नेय स्नान, वारुणेय स्नान,सातपवर्ष (दिव्य)और भस्म स्नानादि का वर्णन आया है (६-१४)। आचमन करने का समय और विधान बतलाया है (१५-१८)। दक्षिण कर्ण का स्पर्श (१६)। सूर्य की किरणों से स्नान का माहात्म्य (२०-२२)। रात्रि में चन्द्रग्रहण पर दान करने का माहात्म्य रात्रि में केवल ग्रहण समय का माहात्म्य है (२३)। रात्रि के मध्य के दो प्रहर को महानिशा कहते हैं। रात्रि के उत्तरार्ध के दो प्रहर को प्रदोष कहते कहते हैं। उसमें दिनवत् स्नान करना चाहिये (२४)। ग्रहण के स्नान का विधान (२५-२८)। जो यज्ञ न कर सकते हों उनको वेदाध्ययन की आवश्यकता है (२६)। शूद्रान को भक्षण कर जो प्रायश्चित्त नहीं करते हैं वे जिस जन्म में जाते हैं उन्हें कुत्ते, गीधादि की योनियां प्राप्त होती है (३०-३८)। जो अन्याय के धन से जीवन चलाता है उसका प्रायश्चित्त ( ३६-४२)। गोचर्म कितनी भूमि की संज्ञा है तथा उस भूमि के दान करने का माहात्म्य (४३)। छोटे-छोटे पाप जैसेमुंह लगाकर जल पीने से पाप (४४-५४)। ऊपर नीचे का उच्छिष्ट जो अन्तरिक्ष में भरता है उसका प्रायश्चित्त २-२
SR No.032668
Book TitleSmruti Sandarbh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaharshi
PublisherNag Publishers
Publication Year1988
Total Pages696
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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