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________________ जीवन बनाना और प्राणी मात्र का हित करना । बस लोककल्याण के साथ-साथ सुख, शान्ति और समृद्धि का यह रामबाण उपचार है। इन स्मतिकारों के अभिप्राय को समझने के लिये अवस्था, देश और काल को दृष्टि में रखकर ही अर्थ की सङ्गति बैठानी चाहिये । उदाहरण के लिये स्मृतिकारों ने कृषि को परम कर्तव्य अनुष्ठेय बताया है। क्योंकि अन्य सब यज्ञ इसी पर आश्रित हैं, अतः यह सबसे महान् यज्ञ है । इसी यज्ञ से सारी सृष्टि की रचना है क्योंकि अन्न के बिना प्राणी जीवित नहीं रह सकते । इस धनधान्य पूर्ण पृथिवी पर खेती कृषि यज्ञ का अनुष्ठान करने से मनुष्य का पुरुषार्थ बढ़ता है "अन्नादेव खल्विमानि भूतानि जायन्ते" "अन्नं ब्रह्मति व्यजानात्" (तैत्तिरीयोपनिषद्) कृषि यज्ञ के फल अन्न की साक्षात् महिमा है। युवावस्था में निरर्थक बैठ परावलम्बी बन समाज के लिये भारस्वरूप होना बहुत बुरा है। इसके विपरीत, वही कृषियज्ञ सन्यासाश्रम में त्याज्य है क्योंकि वहां पुरुषार्थ शक्य नहीं । शक्ति न रहने पर पुरुषार्थ करने से उल्टी हानि ही होती है । ४. बालक के लिए अपनी माता का दूध ही पथ्य, हितकर और प्रकृति के अनुकूल है जो उसकी शक्ति है और बड़े होने पर तो पृथ्वी माता से उत्पन्न किया हुआ अन्न ही उसकी शक्ति है। शास्त्रों में बताया गया है कि पराई स्त्री को देखना अत्यन्त नाशकारक है और कहीं उनके दर्शन से उन्नति सुख प्राप्ति होती है। इसमें बरी भावना से स्त्री को देखना विनाशकारक है; दुर्भावना बुरे भाव से स्त्री को देखने से मन की अस्वस्थता होकर मनुष्य की वीर्य चलायमान हो जाता है जिससे आयु क्षीण होती है क्योंकि शरीर में बिन्दु (वीर्य) ही राजा है । कामी पुरुष की आयु का नाश होता है। परन्तु माताओं और बहनों के प्रति ऊँचे भाव मातृभाव आशीर्वाद और शिक्षा के हेतु दर्शन करने से सुख प्राप्ति एवं पापों का नाश होता है लिखा भी है ___"मरणं बिन्दुपातेन जीवनं बिन्दुधारणात् ।" महर्षियों के सभी शब्द मान्य एवं शिरोधार्य हैं केवल देश, काल और अवस्था का ध्यान रख महर्षियों के वचनों में प्रविष्ट होना चाहिए।
SR No.032667
Book TitleSmruti Sandarbh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaharshi
PublisherNag Publishers
Publication Year1988
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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