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________________ जकड़ना पड़ा। नारदीय स्मृति ने राजनीति, राजसंचालन के नियमों को भी धर्म बताया है । धर्म निर्मात्रिपरिषद् का इसमें विशेषतया स्पष्टीकरण किया है। साथ ही अनुचित कर्मों से जन्मान्तर में भी दुःख योनियों में क्लेश वहन करने का भय दिखाया है "समाः शत्रौ च मित्रे च नृपतेः स्युः सभासदः।" शत्र मित्र में सम व्यवहार करने की क्षमता संसदीय सभासद् की पहली योग्यता बताई है। न सा सभा यत्र न सन्ति वृद्धाः वृद्धा न ते येन वदन्ति धर्मम् । धर्मः स नो यत्र न सत्यमस्ति सत्यं न तद्यच्छलमभ्युपैति ॥ इस श्लोक में सभा का स्वरूप सभासदों की योग्यता का वर्णन संक्षेप में कर दिया है। इसी प्रकार ऋणादान (क्रय-विक्रय) साक्षी, शुद्धि का समग्र व्यवहार खोला गया है। अत्रि-स्मृति में नित्यकर्म प्राणायामादि का प्रधान स्थान कहा गया है-- एकाक्षरं परं ब्रह्म प्राणायामः परन्तपः। ब्रह्माणी चैव गायत्री पावनं परमं स्मतम् ॥ प्रणव को ब्रह्मस्वरूप, प्राणायाम को तपस्या एवं गायत्री मन्त्रजप से निर्मल होकर ब्रह्मज्ञान हो जाता है। ___ इस प्रकार स्मृतियों में वस्तुस्थिति एक होने पर भी किसी स्मृतिकार ने संस्कारों की प्रधानता, किसी ने राजधर्म किसी ने व्यवहार विज्ञान किसी ने कर्मविपाक आदि का प्रधानतया विस्तार किया है। उपरोक्त विवेचन से यह स्पष्ट है कि श्रुतिस्मतिप्रतिपादित धर्म व्यवस्था पालन से प्राकृतिक जीवन का आनन्द लाभ कर मानव सृष्टि का अधिकाधिक हित सम्पादन करता रहे इसी लक्ष्य से महर्षियों के वाक्यों का अभिप्राय हमें ध्यान में लेना चाहिये। क्योंकि त्रिकाल सत्य का साक्षात्कार प्रत्यक्ष अनुभव करने वाले महर्षियों ने सब प्राणियों के हित को और संसार के सर्वाधिक कल्याण कामना तथा वृद्धि को ध्यान में रख इनका निर्माण किया है। अतः ये सृष्टि की नियमावली हैं जिन पर चलकर मनुष्य जीवन सुखी होता है। संक्षेप में, ऋषिप्रणीत इन स्मृतियों का उद्देश्य है प्रकृति के अनुकूल
SR No.032667
Book TitleSmruti Sandarbh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaharshi
PublisherNag Publishers
Publication Year1988
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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