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________________ प्रा० जै० इ० दूसरा भाग ही है, इस बात को लेखक ने जैन और विशेषतः जैनेतर प्रमाण भूत आधारों द्वारा पूर्ण खोज करके सिद्ध किया है । सारा लेख विचार पूर्वक पढ़ लेने के बाद वह बात साधारणतः ही समझ में आजाती है कि जो महत्व किंवा कीर्ति अशोक को प्राप्त हो रही है, वह सब वास्तव में महाराज संप्रति को प्राप्त होनी चाहिए और इन शिलालेखों के द्वारा उत्पन्न किये हुए प्रभावों का श्रेय बौद्ध धर्म को न होकर जैन धर्म को है । ऐतिहासिक जगत में एक महान् परिवर्तनकारी यह लेख इतिहास प्रेमियों के सम्मुख रखा जाता है और इस पर विचार कर वे अपने मन्तव्य इस प्रश्न पर निश्चित करें और इस प्रश्न को उचित न्याय दें इसके लिए इस लेख को यहाँ उद्धृत करना परम उचित है | ) [ संपादक ] अब तक यह बात मानी जाती है, कि सारे भारत में जो जो प्राचीन शिलालेख स्तम्भलेख इत्यादि दिखलाई देते हैं वे सब सम्राट् अशोक की कृति हैं, यह बात वास्तव में वैसी नहीं है जैसा अब तक माना जा रहा है बल्कि कुछ और ही है, इस बात को सिद्ध करना ही इस लेख का मुख्य उद्देश्य है । जब यह बात सिद्ध हो जायगी तब ( वास्तव में वैसा है भी ) उपरोक्त शीर्षक की सत्यता ज्ञात होगी । पश्चात्ताप की बात तो यह है कि ग्रीक बादशाह महान सिकन्दर के भारत पर आक्रमण से पूर्व जो जो बातें हुई हैं, उनका चाहे कितना ही प्रयत्न क्यों न किया गया हो किन्तु अब तक कोई भी पौर्वात्य या पाश्चात्य पुरातत्व वेत्ता इस बात की शोध में निश्चित तथा पूर्ण प्रामाणिक रूप से सफल नहीं हो पाया है। इतना ही नहीं बल्कि जब कभी कोई विशेष शंकास्पद प्रश्न उठ खड़ा होता है उसकी गुत्थियां सुलझाये नहीं सुलझती
SR No.032648
Book TitlePrachin Jain Itihas Sangraha Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1936
Total Pages84
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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