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________________ (१७) ४४ - श्राचार्य श्री सिद्धसूरीश्वर चौचालीसवें सिद्ध सूरीश्वर श्रेष्टि कुल दिवाकर थे । दर्शन ज्ञान चारित्र वारिधि, गुण सब ही लोकोत्तर थे ॥ थे वे जलनिधि करुणा रस के, पतित पावन बनाते थे । ऐसे महापुरुषों के सुन्दर, सुरवर मिल गुण गाते थे | ५७ महा प्रभाविक कृष्णाऋषि हुए, तप तपने में सूरे थे । सपाद लक्ष देश के अन्दर प्रभाव आपके पूरे थे | नागपुर नारायण श्रेष्ठ, राजा भी समकित पाया था । लाखों जैन बनाये गुरु ने, मन्दिर निर्माण कराया था ।। ४५ - श्राचार्य श्री कक्कसूरीश्वर सं० ६१८ पैंतालीसवें कक्कसूरीन्द्रा, श्रार्थ गौत्र उज्जागर थे । चन्द्र समान शीतलता जिनकी, सद्ज्ञान के श्रागर थे । वीर बाणी उपदेशामृत से, भव्यों का उद्धार किया । प्रतिष्ठायें कई करवाई, मौलिक ग्रन्थ निर्माण किया । ४६ - आचार्य श्रीदेवगुप्त सूरीश्वर सं० ६६३ छचालीस पट्टधर शोभे, देवगुप्त सूरीश्वर थे । श्रवतंस थे चोरड़िया कुल के, ज्ञान के दिनेश्वर थे ॥ देश विदेश में धर्म प्रचार की, श्राज्ञा शिष्यों को करदी थी । नूतन जैन बनाये लाखों, जैन ज्योति चमका दी थी ।
SR No.032647
Book TitleParshwa Pattavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year
Total Pages34
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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