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________________ (१६) ४० - आचार्य श्री देवगुप्त सूरीश्वर वि०सं० ७१५ पट्ट चालीसवें देवगुप्त हुए, जिनकी महिमा भारी थी । श्रात्मबल अरु तप संयम से कीर्ति खूब विस्तारी थी । शिथिलाचारी दूर निवारी, श्राप उप्र विहारी थे । गुण गाते सुरगुरु भी थांके, शासन की हितकारी थे । ४१ - आचार्य श्री सिद्ध सूरीश्वर सं० ७४६ एकचालीस पट्टधर पारख, सिद्धसूरीश्वर नायक थे । उज्ज्वल गुण छत्तीस जिनमें, सूरि पद के लायक थे । घूम घूम कर जैन धर्म का, विजय डंका बजवाया था । जिन मन्दिरों की करी प्रतिष्ठा, संघ सकल हरषाया था । ४२ - श्राचार्य श्री कनकसुरीश्वर दो चालीस पट्ट कक्कसूरी, श्रार्य गौत्र उजारा था । किशोर वय में दीक्षा लेकर, स्याद्वाद प्रचारा था ॥ दीक्षा शिक्षा दी शिष्यों को संख्या खूब बढ़ाई थी । भू भ्रमण कर जैन धर्म की, शिखर ध्वजा चढ़ाई थी ॥ ४३ - प्राचार्य श्री देवगुप्त सूरीश्वर वि०सं० ८३० संचेती कुल तिलक भाप थे, पट्ट तेतालीस पाया था । देवगुप्त सूरीश्वर जिनका, देवों ने गुण गाया था । भूपतिः भ्रमर कमल चरणों में, झुक झुक शीश नमाते थे । विद्वता की धाक सुन कर, बादी जंन घबराते थे ।
SR No.032647
Book TitleParshwa Pattavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year
Total Pages34
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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