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________________ मैंने भी इस पवित्र कार्यके करने में अपना पुण्योदय समझा और प्राचीन इतिहास के अनुसंधानमें लग गया। एक तो पटना ऐसाही स्थान है जहां एक एक विषयों को लेकर भी लिखा जाय तो अनेक बड़ी बड़ी लम्बी चौड़ो पुस्तके हो सकती हैं दूसरे ऐतिहासिक पुस्तक लिखनेका अपने जीवन में प्रथम अवसर है इसलिये अनेक कठिनाइयोंका सामना करना पड़ा है। यद्यपि मैं इस पुस्तकके निर्माणमें केवल मालाकार ( मालो ) काही अनुशरण किया है तो भी इतिहासको वाटिका में घुस कर पुष्प चुननेमें अपनी यथा बुद्धि कोई कसर नहीं रखी है। इस पुस्तकमें सिवा कामके व्यर्थ एक भी बात नहीं रखी गयी हैं। इस पुस्तकके पढ़नेसे केवल पटने की प्राचीन अवस्था काही ज्ञान नहीं बल्कि भव्य भावनायुक्त महापुरुषों के सच्चरित्रसे पाठक आत्मकल्याण भी कर सके इस पर भी पूर्ण ध्यान दिया गया है । किन्तु इसमें मैं कहाँ तक सफल हुआ हूं यह पाठक ही विचार करेंगे। मुझे पूर्ण आशा है कि जैन समाज इस पुस्तककी अवश्य अपनावेगी तथा श्रद्धा और प्रेमके साथ इस पुस्तकको., आद्योपान्त अध्ययनकर अलभ्य लाभ उठावेगी और जिस उद्देशको लेकर यह पुस्तक लिखो गयी है उसको सिद्धि में भी पूर्ण सहायता करेगी । अस्तु मैं श्रीमान् बाबू पूर्णचन्द्रजी नाहर एम० ए० एल० एल० बो० को हार्दिक धन्यवाद देता हूं इन्होंने परिशिष्टपर्व नामकी पुस्तक प्रदान करके इस पुस्तकके निर्माणमें बहुत कुछ सहायता की है। तदनन्तर सारस्वत क्षत्रिय विद्यालयके अध्यापक श्री.पं. जयनारायण.
SR No.032643
Book TitlePatliputra Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherShree Sangh Patna
Publication Year
Total Pages64
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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