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________________ ( १२ ) था। वह बड़ी हो साध्वी एवं पतिपरायणा थी। कुछ दिनोंके 'बाद पुष्पवतीके गर्भ से एक साथ दो सन्ताने पैदा हुईं, जिनमें एक लड़का और एक लड़की थी । पुष्पके तुने बड़े हर्ष से दोनो सन्तानका नामकरण संस्कार किया । लड़केका नाम 'पुष्पचल' और लड़कीका नाम 'पुष्पचला' रखा। ये दोनों शिशु चन्द्रकला के समान दिनोंदिन बढ़ने तथा परस्परं असीम प्रेमसे रहने लगे। इन दोनोंके असीम प्रेमको देखकर राजाने विचारा कि यदि मैं अन्यत्र इनका विवाह सम्बन्ध कराकर वियोग करा-ऊंगा, तो ये अवश्य वियोगको सहन न कर प्राण त्याग देंगे । अतएव यही उचित है, कि इन दोनों में ही विवाह सम्बन्ध स्थापित करा दें और उन्हें अपने ही घर रखें । स्नेहमें डूबे हुए राजाने कृत्याकृत्यका कुछ भी विचार न कर अपने पुत्र-पुत्री 'पुष्प चूल' और 'पुष्प चला' का परस्पर वैवाहिक सम्बन्ध करा दिया । पुष्पकेतुकी रानीने उसे बहुत मना किया, कि आप ऐसा अनुचित कार्य न करें; किन्तु राजाने उसकी एक भी न सुनी। विवाह हो जाने के बाद वे दम्पती नितान्त रागवान् होकर परस्पर गृहस्थ धर्मका का अनुभव करने लगे । कुछ दिनोंके बाद 'पुष्पकेतु' परलोकका अतिथि हो गया । पीछे रानीने अकृत्य से निवारण करनेके लिये पुष्पचूल और पुष्पचूलाको बहुत कुछ समझाया किन्तु राज्याभिषेक हो जानेके कारण 'पुष्पचूल' स्वतन्त्र हो गया था एवं पुष्पचूला के साथ उसका अत्यन्त राग था; इसलिये उसने अपनी माताका कहा न माना । जब पुष्पवतीसे यह अकृत्य
SR No.032643
Book TitlePatliputra Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherShree Sangh Patna
Publication Year
Total Pages64
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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