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________________ ( ११ ) 'पुत्र रत्न उससे उत्पन्न हुआ । उस पुत्रको देखकर दोनों दम्पती हर्षका पार न रहा । देवदत्तने विचारा कि घर जानेपर इस नव जात पुत्रका नाम रखा जायेगा पर उसके साथ के लोग उसे "अनिका- पुत्र कह कर पुकारने लगे । थोड़े दिनोंमें देवदत्त सकुशल अपने नगर में पहुँचा। और माता-पिताके सामने विनीत भाव से खड़ा होकर बोला, “यह आपकी पुत्रवधू तथा यह शिशु आपका पौत्र है ।" यह सुनकर उसके पिता परम प्रसन्न हुए, उन्होंने लड़केका मस्तक चूमा और वड़े हर्ष के साथ पौत्रका नाम ''सन्धीरण' रखा यद्यपि उसका नाम सन्धीरण रखा गया; पर पूर्व अभ्यासके कारण लोग उसे अन्निका पुत्र ही कहते थे। वह -बालक बचपन से ही बड़ा सुशील और सच्चरित्र था । और कभी कभी संसारकी असारतावर भी विचार किया करता था । युवावस्था प्राप्त करते ही संसारसे उसका मन विरक्त हो गया। एक दिन उसने अपने माता-पिता आदिसे आज्ञा लेकर श्रीजयसिंहाचार्य के पास जाकर दीक्षा ग्रहण कर ली । थोड़े ही दिनोंमें उस महात्माने निरतिचार चारित्रसे अपने संचित कर्मरूप काँटेको चूरकर तपरूप अग्निसे कर्मरूप मलको भस्मकर दिया और श्रुत पारग तथा ज्ञान-दर्शन चारित्र में परिणत हो गया। इसके बाद गुरु महाराजने भी इन्हें योग्य सहर आचार्य पदसे विभूषित किया । एक दिन श्रीअग्निका पुत्रावार्य विहार करते हुए गंगा ती पर "पुष्पमद्र" नामक नगर में पहुँचे । उस नगर में पुष्पकेतु नामका राजा राज्य करता था । उसको रानी का नाम पुष्पवतो
SR No.032643
Book TitlePatliputra Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherShree Sangh Patna
Publication Year
Total Pages64
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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