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________________ । १४ ] . अयोध्या का इतिहास । पूर्वे इन्द्र, कुबेर देवताओं की बनाई हुई ( १२ योजन चौड़ी ६ योजन लम्बी ) जहां विनीत जन सर्वदा वाम करने रहे दंव, गंधर्व और किन्नर जिम भूमि में प्रवर. णीय के लिये लालायित रहते सनं जगत् में सर्ग स्त्र डो में श्रेष्ट- सर्व नगरियों की शिरोमणि लन तीर्थो में गांजा जैनधर्म की जन्मदा- ऐसी इन्द्र रंगे जर अमर र अयोध्या नगरी में श्रीत्रिभुवन पूनित इवाक बंशके स्थापक मजे क्षात्र में भ पूर्वज क्षत्रियों में श्र युग्लोदि धर्म के प्रणेता शासननायक अनन्त उपकारी अननः बानी श्रमिनेश्व-देव ऋषभ जी गजा नाभी के दरबार माता मारूदेव्या की कक्षी से मनोहर ऐसे भगवान् प्रगट भये। वह भी आर्यावर्त के अहो भाग्य !! आदिमं पृथ्वीनाथमादिमं निः परिग्रहं । धादिमं तीर्थनाथन ऋषभस्वामिनं स्तमः ।। -सलाह ।।. आदि + नाम प्रथम ऐ२ प बोके नाय परिग्रहप्रथम परिग्रह रहित- यांनी प्रथम साधु बमान चौवीसी में जैन धर्मकी दीक्षा लेकर प्रथम साधु भये मादिमं तीर्थ जापं च- प्रथम के श्ल्य नप्त करके प्रथम तीर्थ की स्थापनो कर प्रथम तोर्शकर कहलाये ।
SR No.032642
Book TitleAyodhya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJeshtaram Dalsukhram Munim
PublisherJeshtaram Dalsukhram Munim
Publication Year1938
Total Pages74
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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