SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 20
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अयोध्या का इतिहास। [७] - REAL वज्रेन्द्र-नील-चैडूर्य-हर्ग-किओररश्मिभिः । भित्ति बिनापि खेतत्र चित्र कर्मविरच्यते ॥९४॥ इन्द्र देव की माला से कुबेरजी १२ योजन चौड़ो । योजन लम्बी विनोता पुगे बनाई जो जम्बुद्रोपके भरस खंड में जिसमे अक्षय धन धान्य भरदीया ऐसी इन्द्र पुरी जिसका दूसग नाम अयोध्या था। तत्रोश्चः कांचनहाय मेरुशल शिरांस्यभि: पत्रालंबन लोवेव ध्वज व्याजाद्वितन्यते ॥१५॥ तत्रप्रेदीप्तमाणिक्य कपिशीर्ष परंपराः। प्रयत्ना दर्शनां यान्ति चिर खेचर योषिताम् ॥९१६ तस्यां गृहां गणभुवि स्वस्तिकन्या स्त मौक्तिकः। स्वैरं ककारिक क्रोमां कुरुते वालिका जन ॥९१७ तत्रोद्यानोच्चबृक्षाग्रस्खल्यमानान्यहनिशम् । नेचरीणां विमानानि क्षणं यांति कुलायताम् ६१८ तत्र दृष्ट्वा हर्मेषु रत्नराशीन समुत्थितान् । तदावर अकुटोऽयं तय॑ते रोहणाचलः ॥९१९॥
SR No.032642
Book TitleAyodhya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJeshtaram Dalsukhram Munim
PublisherJeshtaram Dalsukhram Munim
Publication Year1938
Total Pages74
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy