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________________ ( १० ) और खील वितरण करना समोषरण (हड्डी घरोंटा ) की रचना वर उसे पूजना | लक्ष्मी और गणेश की पूजा इस पर्व के विशेष अंग हैं । भगवान के तपस्या काल की बँगाल प्रान्तगत यह पर्यटन भूमि जो कभी राड अथबा लाड़ नाम से प्रसिद्ध थी, इन्हीं के वीर अथवा वर्धमान नामों के कारण आजतक सिंहं भूम, मान भूम बीरभूम और वर्दवान के नाम से प्रसिद्ध हैं' । भारत के धर्मों में जैनधर्म का स्थान भगवान ने अपने जीव काल में जिस धर्म की देशना की थी वह उन के निर्वारण के बाद उनके अनुयायी अनेक त्यागी और तपत्वी महात्मानों के प्रभाव के कारण और भी अधिक फैला । वह फैलते २ भारत के सब ही देशों में पहुँच गया मौर सब हो जातियों के लोगों ने इससे शिक्षा दीक्षा ग्रहण की । यद्यपि इस धर्म के मानने बालों की संख्या आज केवल ३० लाख के लगभग है और यह धर्म आजकल अधिकतर वैश्य जातियों के लोगों में ही फैला हुआ दिखाई देता है परन्तु इससे यह म्रान्ति कदापि न होनी चाहिये, कि यह धर्म सदा से लघुसंख्यक लोगों द्वारा ही भारत में अपनाया गया अथवा यह धर्म सदा से वैश्य लोगों में ही प्रचलित रहा है । नहीं - साहित्य, शिलालेख, पुरातत्व और स्मारकों के अगणित प्रमाणों से यह बात पूरे तौर पर सिद्ध है कि यह धर्म भारत के उत्तर-दक्षिण में काम्बोज गान्धार और बलख से लेकर सिहंल द्वीप तक और पश्चिम पूरत्र में अंग- बंग से लेकर सिन्धु सुरराष्ट्र तक सबही स्थानों और जातियों में फैला हुआ था, और इसके मानने बालों की संख्या ईसा की १६ वीं सदी अर्थात् गल सम्राट अकवर केशासन काल तक करोड़ से भी अधिक रही हैं । बास्तव में इस धर्मं का उद्भव क्षत्रिय वीरों की योगसाधना से हुआ है (अ) N. L. Dey. Ancient Indian Geographical Dictionary P. 164 (श्रा) नागेन्द्रनाथ वस्तँ बगला विश्वकोप १६२१
SR No.032638
Book TitleItihas Me Bhagwan Mahavir ka Sthan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJay Bhagwan
PublisherA V Jain Mission
Publication Year1957
Total Pages24
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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