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________________ दिए हैं इन प्रमाणों से स्पष्ट सिद्ध हो गया है कि पाटण में राजा दुर्लभ का राज वि० सं० १०६६ से १०७८ तक ही रहा था। तब राजा दुर्लभ की राजसभा में वि० सं० १०८० में जिनेश्वर सूरि का शास्त्रार्थ कैसे हुआ होगा ? शायद पाटण का गजादुर्लभ मरकर भूत हुआ हो और वह दो वर्षों से लौट कर वापिस आकर राजसभा की हो और उसमें जिनेश्वरसूरि को खरतर विरुद दे गया हो तो खरतरों का कहना सत्य (।) हो सकता है पर इसमें भी प्रमाण की आवश्यकता तो रह ही जाती है। ____ अब जरा जिनेश्वरसूरि की तरफ देखिये कि खुद जिनेश्वरसूरि क्या कहते हैं ? जिनेश्वरसूरि खुद लिखते हैं कि मैं वि० सं० १०८० में जावलीपुर ( जालौर ) में ठहर कर आचार्य हरिभद्रसूरि के अष्ठक प्रन्थ पर टीका रच रहा था। श्रीयुत मोहनलाल दलीचन्द देसाई जैन सहित्य नो संक्षिप्त इतिहास नामक पुस्तक के पृष्ठ २०८ पर लिखते हैं कि वि० स० १०८० में जिनेश्वरसूरि जावलीपुर में रह कर आचार्य हरिभद्रसूरि के अष्टकों पर वृत्ति रची और आपके गुरु भाई आचार्य बुद्धिसागरसूरि ने ७००० श्लोक प्रमाण वाली बुद्धिसागर नामक व्याकरण की रचना की थी। इस प्रमाण से स्पष्ट पाया जाता है कि वि० सं० १०८० में जिनेश्वरसूरि पाटण में नहीं पर जावलीपुर में विराजते थे। शायद यह कहा जाय कि जावलीपुर से पाटण जाकर शास्त्रार्थ किया हो या पाटण में शास्त्रार्थ करके बाद जावलीपुर आय हो ? पर यह दोनों बातें कल्पना मात्र ही हैं क्योंकि वि० सं० १०८० में जिनेश्वरसूरि जावलीपुर में ठहरे उस समय बुद्धिसा
SR No.032637
Book TitleKhartar Matotpatti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala
Publication Year1939
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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