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________________ भी नहीं। इतना ही क्यों पर उनके पीछे जिनचन्द्र और जिनपति के ग्रन्थों में भी खरतर शब्द की बू तक न मिले । यह सत्रहवों शताब्दि के जिनचन्द्र की काली करतूतों को स्पष्ट सिद्ध जाहिर कर रही हैं । अतः उसके खुदाये हुए जालो शिलालेखोंसे खरतर शब्द प्राचीन नहीं पर अर्वाचीन ही सिद्ध होता है । क्योंकि जो व्यक्ति झूठा होता है वही ऐसा नीच कर्म करता है। मेरी लिखी खरतरमतोत्पत्ति भाग १-२ के प्रमाणों से यह सिद्ध हो चुका है कि खरतर शब्द गच्छ के रूप में विक्रम की चौदहवीं शताब्दि से लिखा जाना शुरु हुआ है । इसके पूर्व यह अपमान के रूप में ही समझा जाता था। क्योंकि जिनदत्तसूरि की प्रकृति से पैदा हुश्रा बारहवीं शताब्दि का खरतर शब्द चौदहवी शताब्दि तक गुप्त रूप में रहे, इसका कारण यही हो सकता है कि यह अपमानसूचक शब्द था कि किसीने इसको नहीं अपनाया था, झूठ बोलना झूठ लिखना तो इस खरतरमत का शुरू से मूल सिद्धान्त ही है । जब ये खास भगवान् और पूर्वाचार्यों के वचनों को अन्यथा करने का भी डर नहीं रखते हैं तो झूठ लेख लिखने का तो भय ही क्यों रक्खें । खरतरों ने जिनेश्वरसूरि को ही क्यों पर वर्द्धमानसूरि, उद्योतनसूरि और गणधरसौधर्म एवं गौतम को भी खरतर लिख दिया । यह भी खरतरों के ही लिखे हुए लेख हैं । अतः जैतारनादिकी मूर्तियों पर खरतरोंके खुदाये हुए जाली लेखों पर कोई भी व्यक्ति विश्वास कर धोखे में न आवे । क्यों कि वे लेख सत्रहवीं शताब्दि में जिनचन्द्र ने खुदाये हैं और उन शिलालेखों की लिपि भी सत्रहवीं शताब्दि को लिपि से मिलती जुलती है।
SR No.032637
Book TitleKhartar Matotpatti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala
Publication Year1939
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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