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________________ षड़यन्त्र रचा ; पर चन्द्रगुत का कवच तो चाणक्य था। रावस का वार खाली गया ; किन्तु राक्षस ने विजेता चन्द्रगुप्त के सामने घुटने नहीं टेके। वह चाटुकार और अवसरसेवी, ऐसा ब्राह्मण नहीं था जो मतलब निकल जाने पर साथी को धोखा दे दिया करते हैं। उसने अपने परिवार को चन्दनदास नामक अपने एक श्रेष्ठी मित्र के यहाँ छिपा दिया और स्वयं चन्द्रगुप्त को विनष्ट करने का प्रयत्न शुरू किया। इधर चाणक्य बहुत ही दूरदर्शी राजनीतिज्ञ था। वह चन्द्रगुप्त मौर्य के राज्य को स्थायो करके सम्पूर्ण भारतवर्ष को एक और महान करना चाहता था। उसने सिकन्दर के हमले के समय पंजाब में देखा था कि छोटे-छोटे राज्य कुछ कर नहीं सकते-छोटे-छोटे राज्यों का अस्तित्व देश के लिये खतरा है। इसीलिए वह राक्षस को मिलाकर, मगध की प्रान्तरिक राजनीति की ओर से निश्चिन्त होकर सम्पूर्ण भारत को एक करना चाहता था। इसीलिए उसने अपने गुप्तचरों द्वारा यह खबर फैला दी कि चूंकि चन्दनदास राक्षस का पता नहीं बता रहा है, इसलिए उसको सूली की सजा दी जायगी । राक्षस अपने मित्र की दुर्दशा को सहन नहीं कर सका। मुद्राराक्षस के अनुसार राक्षस ने चन्द्रगुप्त को आत्मसमर्पण कर दिया और चाणक्य ने प्रकट होकर उसे मिला लिया। पर मुद्राराक्षस नाटक को यह घटना कहां तक सत्य है, यह नहीं कहा जा सकता, क्योंकि चन्द्रगुप्त के मन्त्रियों में किसी राक्षस का पता नही चलता। किन्तु इससे इतना संकेत मिलता है कि जिस ब्राह्मण राजनीति ने व्रात्य क्षत्रिय राज्य के विरुद्ध शूद्र राज्य की स्थापना की थी ; उसने राजनीतिज्ञ चाणक्य के ब्राह्मणक्षत्रिय साझे की राजनीति को समझा और स्वीकार कर लिया-यद्यपि ज्यादा देर तक यह राजनीति न टिक सको । पराजय के चिह्न मिटाए चन्द्रगुप्त मौर्य ने ३२१ ई० पू० में नन्दों का समूल नाशकर मगध के सिंहासन पर अधिकार किया। मगध पर अधिकार करने के बाद चन्द्रगुत
SR No.032629
Book TitleMagadh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBaijnath Sinh
PublisherJain Sanskruti Sanshodhan Mandal
Publication Year1954
Total Pages70
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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