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________________ (32) ललितविस्तर का सांस्कृतिक मूल्यांकन राघवेन्द्र प्रताप सिंह, मध्य प्रदेश बौद्ध संस्कृत के प्रारंभिक ग्रन्थों में ललितविस्तर का महत्वपूर्ण स्थान है। इसका नाम ही इसकी विशेषता को प्रकट करता है। महात्मा गौतम बुद्ध के महापरिनिर्वाण के पहले के सम्पूर्ण जीवन को ललित के नाम से अभिहित किया गया है और उसी को विस्तार प्रदान किया गया है पालि ग्रन्थों में यणित मानवीय बुद्ध के जीवन को यहाँ अलौकिक बनाकर अतिमानवीय स्वरूप प्रदान करने की चेष्टा की गई है। प्रायः सभी विद्वानों ने इस प्रकार की लेखन शैली को बौद्ध आचार्यों का पहला प्रयास माना है। महामान्य का तो प्रादुर्भाव हो ही चुका था और भक्त बौद्ध आचार्यों को बुद्ध का कठोर संघर्षमय जीवन रास नहीं आ रहा था। यह बौद्ध आचार्यों की ऐतिहासिक विवशता भी थी भारतीय वातावरण में अपने आराध्य के प्रति भक्ति का भाव काफी जड़ जमा चुका था। ललितविस्तर का महत्व अपनी भाषा शैली तथा भाव के लिए तो है ही साथ ही इसमें सम्पूर्ण समाज की झलक भी दिखाई देती है। कहा जाता है कि साहित्य समाज का दर्पण होता है। ललितविस्तर इसे चरितार्थ करता है। ललितविस्तर का ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक संदर्भ अपनी पूर्ण विशिष्टता के साथ उपस्थित है जो तत्कालीन भारत के परिज्ञान के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण है। ***** Destroying Developing Foetus Interrupts the Journey towards Nibbāna Abhinav Anand, Delhi किच्छो मनुस्सपटिलाभो, किच्छं मच्चाछन जीवितं। किच्छं सद्धम्मस्सवनं, किच्छो बुद्धानमुप्पादो॥ Buddhists rely on getting rebirth in human beings is difficult
SR No.032621
Book TitleIndian Society for Buddhist Studies
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachya Vidyapeeth
PublisherPrachya Vidyapeeth
Publication Year2019
Total Pages110
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size7 MB
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