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________________ ISIOSANNINORNIROIN मद्रास, वि.सं. २०४९ २७-९-२०००, बुधवार अश्विन कृष्णा - ३० * परिग्रह संज्ञा सबसे ज्यादा पीड़नेवाली हैं । परिग्रह छूटा हैं, परंतु परिग्रह संज्ञा छूट गयी हैं ऐसा लगता हैं ? उसको तोड़ने के लिए दानधर्म हैं । उसके बाद पीड़नेवाली हैं मैथुन संज्ञा, उसको तोड़ने के लिये शीलधर्म हैं । उसके बाद आहार संज्ञा पीडा देती हैं । 'यही चाहिए यह नहीं चाहिए ।' ऐसी वृत्ति आहार-संज्ञा ही हैं। आहार छोड़ना आसान हैं, किंतु आहार संज्ञा छोड़नी मुश्किल हैं । उसे तोड़ने के लिए तपधर्म हैं । चौथी पीड़नेवाली भय संज्ञा हैं । भयके कारण हमारा मन नित्य चंचल रहता हैं । चंचलता भय की निशानी हैं । उसे तोड़ने के लिए भावधर्म हैं । __ आहार नहीं, आहार संज्ञाको तोड़ने के लिए तप हैं । आज इन महात्मा (हेमचन्द्रसागरसूरिजी)ने ७६वीं ओलीका पारणा किया हैं । उनको तप करने की क्या जरुरत ? प्रसिद्धि हैं । परिवार हैं । भक्त वर्ग हैं । सब कुछ हैं । फिर भी तप के प्रति कितना (६० 56600 6 6 65 66 6 6 6 6 कहे कलापूर्णसूरि - ४)
SR No.032620
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 04 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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