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________________ हमने हमारे पास क्या रखा ? और भगवानको गुरुको क्या दिया हैं ? कभी आत्म-निरीक्षण करना । पता चल जायेगा । गोशालक - जमालिको साक्षात् भगवान मिलने पर भी क्यों काम नहीं हुआ ? मोक्ष देरी से होनेवाला था इसीलिए समर्पणभाव नहीं जगा । इससे इन्डायरेक्ट रूप से भगवान ऐसे भी बताते हैं : सभीको एक साथ तार देने की मूर्खता छोड़ देना । बीजाधान के बिना जीवों को भगवान भी नहीं तार सकते तो आप कौन ? 'कार्यं च किं ते परदोषदृष्ट्या, कार्यं च किं ते परचिन्तया च । वृथा कथं खिद्यसि बालबुद्धे, कुरु स्वकार्यं त्यज सर्वमन्यत् ॥' हृदय प्रदीप इस ३६ श्लोकके ग्रंथको कंठस्थ नहीं किया हो तो कर लेना । इसी ग्रंथमें लिखा हैं : सम्यग् विरक्तिर्ननु यस्य चित्ते, सम्यग् गुरुर्यस्य च तत्त्ववेत्ता । सदाऽनुभूत्या दृढनिश्चयो यस्तस्यैव सिद्धिर्न हि चापरस्य ॥ सिर पर सद्गुरु, हृदयमें वैराग्य, आत्मामें अनुभूति हो तो ही मोक्ष मिलता हैं । कभी विचारना : भगवानका योग-क्षेम मुझमें शुरु हुआ हैं या नहीं ? इस भवको हम चूक गये तो अनंत भव चूक गये, ऐसा मानो, नहीं तो यह गधा (हमारा जीव) नहीं समझेगा । यों ही सोया रहेगा । कितना भी कहें तो भी कोई असर नहीं । ऐसे गुरु, ऐसी सामग्री मिलने पर भी यह जगता नहीं हैं । सोना इसे बहुत ही अच्छा लगता हैं । भगवान गौतमस्वामी जैसे को प्रमाद नहीं करने के लिए कहते थे । यद्यपि गौतमस्वामी अप्रमादी थे, अंतर्मुहूर्त में द्वादशांगी बनानेवाले थे, ५० हजार केवलज्ञानी शिष्यों के गुरु थे । गौतमस्वामी के माध्यम से भगवान सबको अप्रमादका संदेश देते थे । कहे कलापूर्णसूरि ४ Www ०५७
SR No.032620
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 04 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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