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________________ तैयार हो जाता हैं। उनकी आज्ञा का ही मुझे पालन करना हैं । उसका रहस्य गुरु ही जाने । आयरिया पच्चवायं जाणंति । सांपको पकड़ने जाते लगे हुऐ झटके से उनका कुबड़ापन दूर भी हो जाता हैं । * पिंडवाडामें (वि.सं. २०३४) पू. धर्मजित् वि.म.के पास निशीथका एक पाठ ऐसा आया कि उन्होंने पढने की और दूसरों को पढाने की मना की थी। पढनेवाले के उपर भी विश्वास कि वे जब अकेले होंगे तब भी नहीं पढेंगे । ऐसे गंभीरको ही छेदसूत्र पढा सकते हैं। अगंभीर शिष्यको छेदसूत्र नहीं दे सकते उसका अर्थ यह नहीं हैं कि गुरुको उसके प्रति पूर्वग्रह हैं । माता छोटे बालकको भारी खुराक नहीं देती उसमें बालकका हित ही हैं । * बीजाधान हो उसका योग-क्षेम अंतमें मोक्ष तक नित्य चालु रहता हैं । भगवान मोक्ष उसीको दे सकते हैं, जिनको वहां जाना हैं । डोकटर प्रत्येक दर्दीको नहीं, इच्छा हो उसीको दवा देता हैं । ___भगवान योग-क्षेम हमेशा करते हैं । ऐसा मैंने स्वयं अनुभव किया हैं । अनेक-अनेक प्रसंगोंमें किया हैं । उदा. आपने कोई प्रश्न पूछा और मैंने तुरंत ही जवाब दे दिया । वहां मैं भगवानकी कृपा देखता हूं। कभी-कभार एकाध घण्टे के बाद भगवान आकर जवाब दे जाते हैं । भगवान का ही हैं। भगवान दिलाने के लिए इच्छते होंगे तो दिलायेंगे । जवाबदारी उनकी हैं । कभी तबीयत अस्वस्थ हो फिर भी भगवानको याद करके वाचनाके लिए झुका देता हूं। योग-क्षेम करनेवाले भगवान बठे हैं । फिर क्या चिंता ? ऐसे भगवान को एक क्षण भी कैसे भूल सकते हैं ? 'समय-समय सो वार संभारं' यों ही नहीं कहा गया । भगवान भूल गये उसी समय मोह का हमला होता ही हैं, भगवान को हमेशां याद करने की तैयारी हो तो भगवान की तरफ से योगक्षेम होता ही हैं। भाग्येशविजयजी : 'इतनी भूमि प्रभु तुमही आण्यो ।' यहां भगवान की तरफसे योग-क्षेम नहीं हैं ? पूज्यश्री : भारत सरकार सैनिकों को हथियार कब देती हैं ? (कहे कलापूर्णसूरि - ४ 60 ५५)
SR No.032620
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 04 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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