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________________ madSANGEETAR __ पू. भुवनभानुसूरिजी आदि के साथ, सुरत, वि.सं. २०४८ EMANSAMROmeanManas २५-९-२०००, सोमवार अश्विन कृष्णा - १२-१३ वडोदराके विद्यार्थीओं द्वारा नरकके जीवंत प्रदर्शन के प्रसंग पर : पूज्य धुरंधरविजयजी : मृत्युके बाद क्या होता हैं ? वह हम नहीं जानते । वह शास्त्रसे ही जान सकते हैं । काले पानी की सजावाला भी कहने नहीं आ सकता । इनाम मिले वह तो फिर भी कहने आ सकता हैं । दुःखका कारण दुःख देना वह हैं । इस जगतमें भी मनुष्यहत्यादिका बदला मिलता ही हैं । किंतु फिर भी पर्याप्त नहीं है। लाखों मनुष्यों को मारनेवाले को या एकको मारनेवाले को भी मृत्युदंडसे ज्यादा यहां दिया नहीं जा सकता । उसके लिए व्यवस्था हैं नरक । अणुबोंब फेंकनेवाला पागल हो गया था । उसको परेशानीपरेशानी हो गयी थी । स्वर्ग-नरक वैक्रिय भूमियां हैं। हमारा ही आचरण किया हुआ हमको मिलता हैं । __मरनेसे दुःखसे मुक्त नहीं हो सकते । प्रायश्चित्त से ही दुःखसे मुक्त हो सकते हैं । कहे कलापूर्णसूरि - ४ 00 560 ५१
SR No.032620
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 04 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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