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________________ मैंने कहा था : श्रीसंघके दर्शन के लिए । चलो, हम सब वापरते-चलते व्यर्थ नहीं बोलने की प्रतिज्ञा . करें । .(प्रतिज्ञा दी गई ।) (११)लोगनाहाणं । बीजाधानादि-युक्त भव्य जीवोंके भगवान नाथ हैं । हरिभद्रसूरिजी बहुत ही कम लिखते हैं, कम बोलते हैं, किंतु ऐसा लिखते हैं कि उसमें से अनेक गंभीर अर्थ नीकल सकते हैं । किसीकी धर्मक्रिया - तपश्चर्या देखकर अहोभाव आया वही धर्म-बीज । इस धर्म-बीजने ही हमको यहां तक पहुंचाया हैं । अभी गुरु ऐसे मिले हैं, जो आपको भगवान तक पहुंचा दें; यदि आप गुरुको मानो । __ जहाज या विमानमें बैठो तो इष्ट स्थल पर पहुंचाते हैं। नहीं बैठो तो जहाज या विमान क्या करें ? भगवान वीतराग हैं । मध्यस्थ हैं । फिर भी नाथ उनके ही बन सकते हैं, जो बीजाधानादि से युक्त हैं । डोकटर या वकील उसी का केस हाथमें लेते हैं, जो अपना समर्पण करते 'क्रोधका नाश करना हैं, क्रोध अप्रिय लगता हैं । क्षमा लानी हैं, परंतु आती नहीं हैं। प्रभु ! आपकी कृपा के बिना क्रोध जायेगा नहीं । क्षमा आयेगी नहीं। भगवान के प्रभावसे ही यह बन सकता इस प्रकार जो भगवानकी शरणमें जाते हैं वे ही सनाथ हैं । उनके लिए भगवान नाथ हैं । साधना और प्रार्थना मैं किसी भी वस्तु की चाह करूं, उससे अच्छा आत्मा के चैतन्यमात्र को ज्यादा चाहुं, ऐसा मेरा मन । बनो, यह श्रेष्ठ साधना और प्रार्थना हैं । (४४ 00wwwmomsoma कहे कलापूर्णसूरि - ४)
SR No.032620
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 04 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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