SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 51
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ * नमो अरिहंताणं और भगवान एक हैं, ऐसे आप मानते हैं ? स्तोत्र से साक्षात् भगवानकी ही आराधना हो सकें, ऐसे विश्वास से ही आचार्य मानतुंगसूरिजीने ४४ बेड़ियां तोड़ी थीं । 'श्री सुपास जिन वंदीए' । इस स्तवनमें श्री आनंदघनजीने नामकी ही महिमा बताई हैं । शिवशंकर, जगदीश्वरु वगेरह एकेक विशेषण तो पढो । आपत्ति आये तब भगवानके नामके बिना शांति कहां हैं ? इसीलिए ही भगवान को 'जगत-जन्तु-विश्राम' कहा हैं । पूरे विश्वको ज्ञानसे भर देनेवाले भगवान विश्वंभर' हैं। विविध नामों से भगवानकी कैसी विविध-विविध शक्तियां और कैसे गुण प्रगट हुए हैं ? रथको सारथि चलाता हैं, उसी प्रकार भक्तको भगवान चलाते हैं । इसीलिए ही कहा : 'मुक्ति परमपद-साथ' "एम अनेक अभिधा धरे, अनुभव गम्य-विचार; जे जाणे तेहने करे, आनंदघन अवतार...' ऐसे भगवानके अनेक नाम हैं । यह अनुभव से ही जान सकते हैं । जो जाने उसे भगवान आनंदघन स्वरूप बना देते हैं । * पुरुषगंधहस्ती तक असाधारण हेतु स्तोतव्य, संपदा पूरी हुई। (१०)लोगुत्तमाणं । यहां पांचों सूत्रों में लोक का अर्थ बदलता जाता हैं । पंचास्तिकायमय लोक कहा जाता हैं, फिर भी यहां लोक से भव्य लोग ही लेने हैं । एक शब्द के बहुत अर्थ होते हैं । 'हरि लंछन सप्त हस्त तनु' यहां हरि याने सिंह । कहीं हरि शब्दका अर्थ इन्द्र होता हैं । ऐसे हरिके १३ अर्थ होते हैं । सर्व जीवोंमें उत्तम ऐसा कहा हो तो अभव्यों से भव्य भी उत्तम गिने जाते हैं, इसीलिए ही भव्यलोकमें भी उत्तम भगवान हैं, ऐसे इस सूत्रसे बताया ।। सकल मंगलके मूल भगवान हैं । इसीलिए ही वे लोकोत्तम हैं । उनका तथाभव्यत्व ही उस प्रकारका हैं । (कहे कलापूर्णसूरि - ४omwwwwwwwwwwwwwwwww २१)
SR No.032620
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 04 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy