SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 279
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ युनो में जाने का मैंने विरोध किया था । वहां पूरा रिंग - मास्टर वे ही है। लेकिन बाद में जानेवाले भी पछताये । हिन्दु नहीं, इन्डियन डेलीगेशन था । साथ में मुस्लीम आदि सब गये थे । * एक बार भी सती ने अगर लुच्चे के साथ समझौता कर दिया तो वह सती नहीं रहेगी । हम को आकर्षण से मुक्त होना होगा । * सुशील मुनि को जैन धर्म के प्रचारक तो मानो । उनका विदेश में जाने से अहिंसा आदि का तो प्रचार होगा । युनो में जानेवाला तो उनका नालायक शिष्य था । * आप अगर विदेश में नहीं जाना चाहते है तो हम जा कर आदिनाथ भगवान की प्रतिष्ठा करा दें । सिर्फ पालिताणा में आदिनाथ को सीमित रखना है क्या ? हम अलग हो कर कोई बात समझा नहीं सकते । पू. हेमचन्द्रसागरसूरिजी : पत्रक में आबादी कैसे लिखें? आ. धर्मेन्द्रजी : मुख्य रूप से हिन्दु ही लिखें, ब्रेकेट में जैन इत्यादि लिखें। पत्रक में अगर खाने नहीं हो तो सरकार से लड़ो। पू. हेमचन्द्रसागरसूरिजी: धार्मिक लक्ष्य को लेकर हम अलग है, सामाजिक, सांस्कृतिक, भौगोलिक आदि रूप से हम आपके साथ ही है । आचार्य धर्मेन्द्रजी : आज जैन युवक, ख्रिस्ती युवतिओं के साथ शादी कर के आशीर्वाद के लिए हमारे पास आते है। हम आशीर्वाद देते है। दूसरा हम क्या कर सकते है ? क्या बहिष्कार करें ? बहिष्कार नहीं, परिष्कार करना है। * मैं तो आपका मजदूर हूं। आप जो भी चाहे मेरा उपयोग कर लें । पू. धुरंधरविजयजी : हम हिन्दु तो है ही लेकिन जैनेतर हिन्दु हम को 'हिन्दु' के रूप में स्वीकार करते है क्या ? आ. धर्मेन्द्रजी : पूरा समाज उन्मादग्रस्त है। ज्योति बसु, मुलायम सिंह आदि हिन्दु नहीं है क्या ? फिर भी ये लोग गोमांस खा. रहे है । (कहे कलापूर्णसूरि - ४wwwwwwwwwwwwwwwwwwws २४९)
SR No.032620
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 04 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy