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________________ ओपरेशन के बाद, भुज, वि.सं. २०४६ १३-१०-२०००, शुक्रवार अश्विन शुक्ला - १५ व्याख्यान लंडन निवासी गुलाबचंदभाई द्वारा 'कडं कलापूर्णसूरिए' पुस्तक का विमोचन और मनफरा निवासी मातुश्री भमीबेन बी. देढिया द्वारा लोकार्पण विधि । * चमत्कार से नमस्कार तो सर्वत्र होता हैं, पर श्रीपाल के जीवनमें कदम-कदम पर नमस्कार से चमत्कार का सर्जन हुआ हैं । यहां धवल के हृदय की कालिमा और श्रीपाल के हृदय की धवलताका की पराकाष्ठा देखने मिलती हैं । सचमुच तो धवल की अधमता के कारण श्रीपाल की उत्तमता ज्यादा शुभ्र रूप से चमकती हैं । अंधकार के कारण प्रकाश की महिमा हैं । रावण के कारण राम की महिमा हैं । दुर्योधन के कारण युधिष्ठिर महान हैं । धवल के कारण श्रीपाल महान हैं । धवल शेठ नहीं होता तो श्रीपाल की उत्तमता कैसे जान सकते ? खलनायक के बिना नायक की महानता जानी नहीं जा सकती । इसलिए ही प्रत्येक चरित्रोंमें (और आज की फिल्मोंमें भी) नायक के साथ खलनायक (हीरो के साथ विलन) का पात्र भी होता हैं । १५८ 00000000000000000665 कहे कलापूर्णसूरि - ४)
SR No.032620
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 04 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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