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________________ 'जिन तेरे चरण की शरण ग्रहुँ, हृदय कमलमें ध्यान धरत हूं, शिर तुज आण वहुं ।' हृदयमें भगवान और सिर पर भगवान की आज्ञा हो तो दूसरी किस वस्तु की जरुरत हैं ? ___ मैं यह बोलता हूं वह मैं करता हूं। करके (जीकर) बोलता हूं । तो ही आपको असर होगा न ? * काया को तपसे तपाएं नहीं, मात्र मन ही जोड़ने का प्रयत्न करे तो भगवान ऐसे भोले नहीं हैं कि आ जाये । * अपनी आत्मामें ही लीन बने हुए आत्मा देखना वह परमलय हैं । * अरिहंत की एक ही शरण पकड़ लें तो भी दूसरे तीनों आ जाते हैं । 'सिद्धर्षिसद्धर्ममयस्त्वमेव' भगवान सिद्ध, ऋषि और धर्ममय हैं। पुलीस का अपमान वह सरकार का ही अपमान हैं । साधु का अपमान वह भगवान का ही अपमान हैं । क्योंकि अपेक्षा से दोनों अभिन्न हैं । काल का बम पड़ेगा तब ? भूतकालमें बाहरी आक्रमण से बचने राजा किल्लों का निर्माण करते थे। अब बम पड़ने लगे तो लोगोंने बंकर बनाये । परंतु जब यह काल का बम पड़ेगा तब किसकी शरण लेंगे ? भौतिक विज्ञान के पास इसका जवाब नहीं हैं । बम पड़ा होता हैं उस धरती को अतिश्रम से कोई पल्लवित करता हैं । घावग्रस्त व्यक्ति की परिचर्या करता हैं, परंतु मृत्यु के पास वह क्या कर सकता हैं ? धर्म ही मानव को स्वाधीनता और सुख देगा । (१३८ 6wwoooooooooooo000 कहे कलापूर्णसूरि - ४)
SR No.032620
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 04 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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