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________________ INDIASISAR SASURRRRRR RRRRRRRRESSgeeRSHIKSSSUNSSISEMISSUHRIKRSPassplaye8530AROO ऊटी में पूज्यश्री, वि.सं. २०५३ ७-१०-२०००, शनिवार अश्विन शुक्ला द्वि. - ९ सुबह ध्यान विचार : * रत्नत्रयी परम ज्योति हैं। पूर्ण रत्नत्रयीवाले पूर्ण ज्योतिर्धर हैं । इसीलिए ही गणधरोंने उनको ‘उज्जोअगरे' 'उद्द्योत करनेवाले' कहे हैं । परम ज्योतिवाले भगवानने गणधरों को ज्योति दी । हमारी योग्यता और क्षयोपशम के अनुसार हमको भी ज्योति की प्राप्ति होती हैं । __ यह गंभीर कृति हैं। इसके लिए योग्य बनेंगे तो ही समझेंगे । साधना के बिना यह समझ में नहीं आता । धर्मध्यान से ध्यान का प्रारंभ होता हैं । उसमें भी आज्ञाविचय प्रथम प्रकार हैं । इसका अर्थ यह हुआ कि भगवान की आज्ञा से ही ध्यान का प्रारंभ होता हैं । २४ ध्यान के अधिकारी मुख्यरूप से देश-सर्वविरतिधर हैं । इसके अलावा सम्यग्दृष्टि वगैरह में बीजरूप योग हो सकता हैं । हमारा नंबर उसमें लगे ऐसी प्रार्थना करें । (११६ 8 605666 कहे कलापूर्णसूरि - ४)
SR No.032620
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 04 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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