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________________ पू. रत्नसुंदरसूरिजी आदि के साथ, सुरत, ध्यान- विचार : वि.सं. २०५५ - २-१०-२०००, सोमवार अश्विन शुक्ला सुन्न कल जोइ बिंदू, नादो तारा लओ लवो मत्ता । ५ पय- सिद्धी परमजुया, झाणाई हुंति चउवीसं ॥ ध्यान विचार किसके आधार पर लिखा गया हैं वह तो आगमधर जाने, परंतु है अद्भुत ! पक्खिसूत्रमें कथित 'झाण विभत्ति' जैसे किसी ग्रंथमें से उद्धृत हुआ हो, ऐसा लगता हैं । खास करके पू.पं. भद्रंकरविजयजी म. की प्रेरणा से ही इस ग्रंथ का अभ्यास प्रारंभ किया था । वह पत्र पुस्तकमें प्रकाशित भी हुआ हैं । आगमिक ग्रंथ हमारे पास पड़ा हुआ ( पाटण, हेमचन्द्रसूरि ज्ञानभंडार) होने पर भी हमारी नज़र नहीं गई वह आश्चर्य हैं । सबसे पहले मुनि जंबूविजयजी द्वारा अनूदित होकर तथा धर्मधुरंधरविजयजी द्वारा संपादित होकर मूल पाठ के साथ साहित्य विकास मंडल द्वारा प्रकाशित हुआ था । ८४ 00000 १८ कहे कलापूर्णसूरि - ४
SR No.032620
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 04 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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