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________________ स्वाध्याय मग्नता १-१०-२०००, रविवार अश्विन शुक्ल ४ भगवान का श्रुत खजाना विपुल और अद्भुत हैं, आत्मविकास का कारण हैं । जगत को सच्चा ज्ञान देनेवाले भगवान ही हैं । यही सबसे बड़ा उपकार हैं । बहरा और गूंगा आदमी प्रायः कभी उपकारक बन नहीं सकता या प्रसिद्ध नहीं हो सकता। क्योंकि ज्ञान के आदानप्रदान के द्वार बंध हैं। ज्ञान का आदान द्वार कान हैं और प्रदान द्वार जीभ हैं । जो आदान कर सकता हैं वही प्रदान कर सकता हैं । जो सुन सकता हैं वही सुना सकता हैं । इसीलिए ही पांचों इन्द्रियोंमें कान महत्त्वपूर्ण गिना हैं । आपने अगर सुना न हो तो कभी बोल नहीं सकते । छोटा बालक पहले सुनता हैं उसके बाद ही बोलता हैं । आज के डोकटर कहते हैं : जन्म से गूंगा बालक प्राय: बहरा ही होता हैं । जिसने कभी सुना नहीं वह बोल कैसे सकेगा ? इस कान से परनिंदा या स्वप्रशंसा सुनना वह कानका अपराध हैं । इस अपराध का सेवन जो नहीं करता वह महायोगी हैं । 4. wwwwwwwwwww कहे कलापूर्णसूरि- ४
SR No.032620
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 04 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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