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________________ का प्रतिबिम्ब पड़ेगा ही । चित्त को निर्मल बनायें । भगवान आपके चित्त में प्रविष्ट होने के लिए कभी के उत्सुक हैं । * ऐसे शासन की तथा ऐसी सिद्धगिरि की भूमि की स्पर्शना की प्राप्ति कितना भारी पुन्योदय है ? यह तो अनन्त सिद्धों की भूमि है । अनन्त सिद्धों की हम पर छत्रछाया है, जो निरन्तर हमें उपर खींच रहे हैं । शीतलता प्राप्त करने के लिए जिस प्रकार मनुष्य शीतल छाया में आते हैं, प्याऊ के समीप आते हैं, उस प्रकार हम इस तीर्थ स्थान पर आये हैं । यहां सभी एकत्रित हुए हैं उन सबकी एक ही भावना है - आत्म कल्याणकारी साधना करना । कुछ समय पूर्व समस्त महात्माओं ने विचार किया था कि सामूहिक वाचना का आयोजन क्यों न किया जाये ? उस कारण से ही यह आयोजन हुआ है । संघ को भी हमसे भारी अपेक्षा है । किसी के पास संगठन की शक्ति हो अथवा किसी के पास प्रवचन-लेखन आदि की शक्ति हो, जिसे यहां लगानी है, शासन के लिए लगानी है । हम सभी का कर्तव्य है कि जो मिला है वह अपनी भावी पीढी को दें । विनियोग के बिना गुण-सानुबन्ध नहीं बनता, भवान्तर में साथ नहीं चलता, ऐसा हरिभद्रसूरिजीने कहा है ।। गृहस्थों के लिए व्याख्यान चालु है, परन्तु हमारे (साधुओं) के लिए क्या ? इसलिए इस वाचना का आयोजन हुआ है । यहां चातुर्मास रहे हुए लगभग सभी महात्मा एक विचार वाले हैं, परस्पर सहयोग देने वाले हैं । सामूहिक व्याख्यान आयोजित करने का निश्चय हुआ । विषय क्या रखा जाये ? तब मैंने कहा : सर्व प्रथम 'मैत्री' रखो, उसके बाद 'भक्ति' रखेंगे । परन्तु सर्व प्रथम जो कहे वह जीवन में होना चाहिये । जानकारी तो पढ़कर भी प्राप्त की जा सकती है, परन्तु जब तक वह पढ़ा हुआ हमारे जीवन में उतरा हुआ नहीं हो, तब तक व्याख्यान में कही गई बात में दम नहीं होता । अतः उसे भावित बनायें । (कहे कलापूर्णसूरि - ३0000000ooooooooooooo ७)
SR No.032619
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 03 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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