SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 325
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ BARSHANDARSHASTRIANTOURIcess RAILERNANCCORRORAMECANDostesslatkaawaSES पदवी प्रसंग, मद्रास, वि.सं. २०५२, माघ शु. १३ ३-९-२०००, सोमवार भादौं शुक्ला-५ : सात चौबीसी धर्मशाला सामूहिक क्षमापना रथयात्रा (शोभायात्रा) के चढ़ावे पूज्य आचार्य नवरत्नसागरसूरिजी : जिनशासन की महान् प्रभावना करने वाली इस शोभायात्रा में (वरघोड़े में) सभी को उपस्थित रहना है। जिनशासन की प्रभावना में हम कुछ भी निमित्त बनें, ऐसे भाग्य कहां से ? पूज्य आचार्य हेमचन्द्रसागरसूरिजी : रथयात्रा का प्रयोजन क्या है ? कान खोल कर सुन लो - आप या मैं - हम सबने सर्व प्रथम जैन धर्म प्राप्त किया, उसका बीज कैसे पड़ा ? किसी भव में यह रथयात्रा देखकर अहोभाव पेदा हुआ होगा । प्रशंसा ही बीज है । कुमारपाल की रथयात्रा में १८०० करोड़पति होते थे। कलकत्ते की रथयात्रा में बंगाली बाबू नाचते थे । प्रत्येक के सिर पर टोपी होती थी । हम पूर्वजों के पुण्य के कारण कुछ फूल गये हैं । पुण्य की थाती आगे चलानी हो तो यह परम्परा की थात आगे (कहे कलापूर्णसूरि - ३ (56 5 0 २९३)
SR No.032619
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 03 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy