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________________ एक बोला - आनन्द आया । दूसरा बोला - परेशान हो गया । आज तक कभी नहीं और आज जुदाई क्यों ? दोनों विचार में पड़ गये । दूसरे दिन छोटे भाई ने भगवान को पूछा - मुझे आनन्द आया, बड़े भाई को आनन्द क्यों नहीं आया ? भगवान ने पूर्व जन्म बताते हुए कहा, 'तुम दोनों भाई थे । चोरी करने के धंधे में पड़ कर नामी चोरों के रूप में प्रसिद्ध हुए । कोतवाल ने पीछा किया परन्तु दोनों दौड़ कर गुफा में घुस गये । वहां एक मुनि काउस्सग्ग कर रहे थे । एक को आनन्द हुआ - कहां मेरा नीच जीवन ? कहां यह उत्तम जीवन ? उसने अपनी निन्दा और मुनि की प्रशंसा की । ऐसा न हो तब तक दोष नहीं जाते और गुण नहीं आते । जब तक पर-निन्दा होती है, तब तक गुण-दृष्टि नहीं आती । स्व-निन्दा आने पर गुण-दृष्टि आती ही है । स्व-निन्दा होने पर स्व-दुष्कृत गर्दा आती है । फिर गुण-दृष्टि आने पर सुकृत की अनुमोदना आती है । फिर गुण-सम्पन्न भगवान की शरणागति आती है । यही क्रम है। दूसरे ने मुनि को देख कर सोचा - देखा ? कोई धंधा नहीं मिलने के कारण 'बावा' बन कर बैठ गये । मुंड मुंडाये तीन गुण, मिटे शिर की खाज । खाने को लडु मिलें, लोग कहें महाराज ॥ दूसरे ने इस प्रकार मुनि को धिक्कारा । इसी कारण से एक को आनन्द हुआ, दूसरे को नहीं हुआ । मेरी बात समझ में आती है क्या ? यह भगवान की वाणी सुनकर आनन्द नहीं आता हो तो समझें की अभी तक हम दुर्लभबोधि हैं ।। आनन्द आता हो तो समझें कि पूर्व जन्म में कभी कहीं बीज पड़ गया है । (५) सयंसंबुद्धाणं बाहर से चाहे यों लगता हो कि भगवान ने भवान्तर में दूसरों (२८६oonsoooomosomsommon कहे कलापूर्णसूरि - ३)
SR No.032619
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 03 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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