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________________ उपधान - मालारोपण, वि.सं. २०४३, मांडवी २१-८-२०००, सोमवार भाद्र कृष्णा-६ * भगवान महावीर ने केवलज्ञान के पश्चात् तीस वर्षों तक देशना की धारा चलाई और स्वयं द्वारा स्थापित तीर्थ ऐसा सुदृढ बनाया कि इक्कीस हजार वर्षों तक तनिक भी आंच न आये । पुष्करावर्त मेघ इतना प्रबल एवं शक्तिशाली होता है कि बिना वर्षा के २१ साल तक भूमि में से फसल आती ही रहे । भगवानने भी ऐसी वाणी की वृष्टि की कि इक्कीस हजार वर्षों तक धर्म की उपज आती रहेगी । * तीर्थंकर नामकर्म की तरह गणधर - नामकर्म भी होता है । जिसने गणधर नामकर्म बांधा हो वही गणधर बन सकता है । इसी कारण से चौदह हजार शिष्यों में से ग्यारह गणधर ही बन सके । ग्यारहों गणधर ब्राह्मण कुल में जन्मे थे । हरिभद्रसूरि भी ब्राह्मण कुल में उत्पन्न हुए थे फिर भी देखो तो सही, उनके हृदय में जैन- शासन के प्रति कितना बहुमान था । उनके ग्रन्थ पढ़ने से यह सब समझ में आता है । विधि के प्रति बहुमान, अविधि का निषेध, भगवान के प्रति पूर्ण बहुमान आदि आपको कदम-कदम पर उनके शास्त्रों में दृष्टिगोचर होते हैं । छोटीछोटी बातों में भी यह सब देखने को मिलेगा । जिनालय के लिए (कहे कलापूर्णसूरि ३ क २७३
SR No.032619
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 03 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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