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________________ पू. धुरन्धरविजयजी म. : आज पर्युषण पूर्व का अन्तिम रविवार है । पर्युषण के बाद में भी यह चालु रखने के लिए प्रयत्न करें । सभा पूरी होने से पूर्व आज कोई उठे नहीं । जो खड़ा होगा उसे सभा तोड़ने के लिए पाप लगेगा । यह विनय है - पू. आचार्य भगवान के बाद ही उठना है । पू. मुनिश्री उदयप्रभविजयजी म. : गुण, पर्याय, उम्र आदि में अनेक गुरुजन नीचे हैं, उनसे क्षमा याचना करता हूं । शायद क्षमा याचना न करूं तो भी मैं कसूर (Fault) में नहीं हूं । संघ की आज्ञा से बैठा हूं । __ घर छोड़े बिना अणगार नहीं बना जाता । मन को छोड़े बिना अच्छा शिष्य नहीं बना जाता । कदाग्रह एवं स्वतन्त्रता छोड़े बिना संघ-सेवक नहीं बना जाता । जिसे न्याय करना आता है वही संघ की एकता कर सकता जो स्वार्थ छोड़े, सादगी अपनाये, वही संघ का नेता बन सकता है। वस्तुपाल को संघ की पूजा करते समय पसीना छूट रहा था, तब उन्हों ने कहा था कि इस समय मैं जन्म-जन्म की थकावट उतार रहा हूं । यह सादगी है, यह बहुमान-सूचक हैं । कितनेक श्रावक आज भी लोच आदि कराते हैं । यह सादगी संघ का बहुमान है । वह तप, ज्ञान आदि क्षेत्र में कच्चा हो तो भी यह संघ बहुमान से मुक्ति प्राप्त कर ले । भिन्न-भिन्न समुदायों में गोचरी एवं वन्दन का व्यवहार न हो यह भेदभाव नहीं है, परन्तु एक व्यवस्था है । सच्चा न्याय कौन कर सकता है ? जो अपने घर रहे हुए व्यक्ति को अयोग्य व्यवहार से रोक सकता है, वही न्याय कर सकता है। सर्व प्रथम एकता एवं मैत्री का प्रारम्भ घर से होना चाहिये । बड़प्पन धन के आधार पर नहीं, गुणों के आधार पर है । एकता के लिए अपनी मान्यता भी एक ओर रखनी पड़ती है । उस प्रकार हम एक बनें । [२५८onnamonommmmmmmmmmo0 कहे कलापूर्णसूरि - ३)
SR No.032619
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 03 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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