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________________ गई हो तो बतायें । एक भी जीव अपने आप मोक्ष में गया हो तो बतायें । और, एक भी गुण अपने आप प्राप्त किया हो तो बतायें। पू. धुरन्धरविजयजी म. : निसर्ग समकित कैसे ? पूज्यश्री : निसर्ग को ध्यान-योग में भवनयोग कहा है । करण में उपदेश होता है। भवन में प्रत्यक्ष उसकी आवश्यकता नहीं होती । अधिकतर भवन में भी पूर्व जन्म के गुरु तो कारण होते ही हैं । मरुदेवी माता को चाहे पूर्व जन्म के गुरु नहीं थे, परन्तु उस जन्म में तो भगवान का आलम्बन मिला ही था । संघ का उपकार अत्यन्त अधिक हैं । हमें चतुर्विध संघ के सदस्य नहीं मिले होते तो यह कक्षा सम्भव ही नहीं हो सकती थी । धार्मिक माता आदि नहीं मिली होती तो अपनी दशा कैसी होती? कतिपय आत्मा तो गर्भ में होते हैं और माता उपधान करती है । कितने-कितने विधि-विधान के संस्कार गर्भावास से ही प्राप्त होते हैं । उसके बाद स्तन-पान आदि के द्वारा, परिवार-शिक्षक आदि के द्वारा भी संस्कार प्राप्त होते हैं । इसीलिए कृतज्ञता के स्वामी तीर्थंकर संघ को नमन करते हैं। उनकी योग्यता अन्य जीवों की अपेक्षा सर्वोत्कृष्ट हैं । __ भगवान की अनुपस्थिति में इक्कीस हजार वर्षों तक संघ ही शासन चलाता है। अतः नवकार में पंच परमेष्ठियों को नमस्कार संघ को ही नमस्कार है । आप और आपकी पेढ़ी (दुकान) एक ही गिनी जाती है । दुकान का लाभ आपको ही मिलता है, उस प्रकार तीर्थंकर एवं तीर्थं एक ही गिने जाते हैं । तीर्थ अर्थात् भगवान की दुकान । यह दुकान आज भी चल रही है। जिस प्रकार आपकी अनुपस्थिति में मुंबई में इस समय भी दुकान चल रही है । * ढाई द्वीप की सुंई के अग्र भाग जितनी भी ऐसी जगह नहीं है, जहां से अनन्त सिद्ध नहीं हुए हों । अनन्त-अनन्त काल व्यतीत हो गया अतः अपहरण आदि के द्वारा समुद्र, नदी आदि स्थानों से भी अनन्त सिद्ध हो चुके हैं । . पू. धुरन्धरविजयजी म. : मेरु पर्वत की चोटी खाली न रह जाये ? मेरु शिखर तो उर्ध्व लोक गिना जाता है न ? कहे कलापूर्णसूरि - ३ 60mmoooooooooooooo २२७)
SR No.032619
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 03 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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