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________________ 'इस जन्म में नहीं तो पिछले जन्म में हमने पीड़ा दी ही होगी । इसका ही यह फल है।' ऐसा उसे समझाना पड़ा । ऐसी विचारधारा से अनुकम्पा आती है। अनुकम्पा दो प्रकार की होती है - द्रव्य अनुकम्पा, भाव अनुकम्पा । द्रव्य-प्राण की रक्षा द्रव्य अनुकम्पा है । भाव-प्राण की रक्षा भाव अनुकम्पा है । किसी की देह की पीड़ा के लिए सहानुभूति बताना द्रव्य अनुकम्पा है । उस प्रकार उसके अभिमान आदि दोषों के लिए दया सोचना भाव अनुकम्पा है । बिचारी गुणहीन आत्मा का क्या होगा ? ___ अनुकम्पा आने पर ऐसे गुणहीन एवं दोष-पूर्ण संसार से छूटने का और गुण पूर्ण दोषहीन मुक्ति में जाने की इच्छा होती ही है। यही संवेग - निर्वेद कहलाता है। इन सबके फल स्वरूप 'शम' मिलता है । ये सम्यग्दर्शन के लक्षण हैं । यह सम्यग्दर्शन प्राप्त करके सभी मुक्ति प्राप्त करें । यह पुस्तक तो आगमों के रहस्यों का खजाना है। प्रत्येक पृष्ठ पढ़ते समय मन-मयूर नृत्य कर उठता है। - साध्वी मोक्षदर्शिताश्री पूज्यश्री के हृदय में... अरे, रग-रग में कैसी अद्भुत जिन-भक्ति बसी है, जिसकी अनुभूति यह पुस्तक पढ़ने से हुई । - साध्वी संवेगरसाश्री (कहे कलापूर्णसूरि - ३00 aoooooooooooo00 २११)
SR No.032619
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 03 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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