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________________ सेवन करते हैं । अब तो हद हो गई । शासनदेवी से नहीं रहा गया । उन्हों ने उस शिष्य की घोर तर्जना की । आप जब अपने आत्म धर्म में पूर्ण रूपेण स्थित होते हैं तब आसपास के देव आपकी रक्षार्थ आयेंगे ही। * आज समय कम हैं, क्योंकि साध्वीजी सुगुणाश्रीजी कालधर्म को प्राप्त हुए हैं । उनकी अग्नि-संस्कार-विधि बाकी है। उन्होंने अधिकतर चातुर्मास अहमदाबाद में ही किये थे । चातुर्मास के लिए स्वास्थ्य के कारण हमने भी इनकार लिखा था, परन्तु अत्यन्त भावना होने से अनुज्ञा प्रदान की । कैन्सर की बीमारी से कालधर्म को प्राप्त हुए, परन्तु किसी को शोक नहीं करना है। अत्यन्त ही आराधक थे। उनकी आत्मा को शान्ति प्राप्त हो, इसीलिए यह वाचना रखी है। आज प्रातः ही मैं जाकर आया था । मुझे देखकर अत्यन्त ही प्रसन्न हुए थे, जागृत थे । उसके बाद गणि मुक्तिचंद्रविजयजी भी जाकर आये थे । उनकी समाधि की अत्यन्त अनुमोदना करते हैं । (सूचना : आज पूज्य साध्वीजी सुगुणाश्रीजी म. कालधर्म को प्राप्त हुए हैं । उनके अग्नि-संस्कार की बोलियां सात चौबीसी धर्मशाला में बोली जायेगी। यहां वाचना पूर्ण होने पर सभी गृहस्थ वहां आयें ।) अनुभव-ज्ञान अनेक शास्त्रों के पारंगत पंडितों को जो अनुभव ज्ञान नहीं होता वह सच्चे भक्तों में होता है, क्योंकि अनुभव ज्ञान में केवल बुद्धि प्रवेश करने के लिए असमर्थ है । परमात्ममय बनी हुई बुद्धि जिसे प्रज्ञा कहते हैं, वह अनुभव ज्ञान बनती हैं । उस प्रज्ञा के द्वारा आत्मा पहचानी जाती है। (१६६ 00000000000000000 कहे कलापूर्णसूरि - ३)
SR No.032619
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 03 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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