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________________ STOR ESOHORSPIRNORT छत्तीसगढ, वि.सं. २०५४ ७-८-२०००, सोमवार सावन शुक्ला -८ * सर्वोत्कृष्ट धर्म-सामग्री इस भव में हमें प्राप्त हुई है । हम प्रभु को बहुत-बहुत धन्यवाद देते हैं, जिन्हों ने हमें यह सामग्री प्रदान की । उनकी कृपा के बिना यह सामग्री कहां मिलने वाली थी ? उसमें भी सिद्धक्षेत्र जैसी उत्तम भूमि मिली । साधना के लिए इससे अधिक क्या अनुकूलता हो सकती है ? यहां आकर साधना न करें तो फिर कहां करेंगे ? यहां लगने वाले दोष साधना के द्वारा ही धोये जा सकेंगे । ऐसा अवसर बार-बार नहीं आयेगा । अन्य स्थानों में तो बड़ेबड़े संघों को संभालना पड़ता है, यहां ऐसा कोई उत्तरदायित्व नहीं है । यहां आपका समय बिगाड़ने वाला कोई नहीं है, केवल आपको सचेत रहना है ।। * यह चैत्यवन्दन कोलाहल नहीं है, अनुष्ठानों में राजा के समान यह तो महान् योग है। * नमस्कार तीन प्रकार के हैं : (१) कायिक : काया की स्थिरतापूर्वक । (कहे कलापूर्णसूरि - ३ 0 Goa Goaasana १५७)
SR No.032619
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 03 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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