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________________ यह अवसर बार बार आये (गुजराती आवृत्ति में से) पू. आचार्यश्री जिनचन्द्रसागरसूरिजी म.सा. - पू. आचार्यश्री हेमचन्द्रसागरसूरिजी म.सा. अध्यात्मलक्षी पू. आचार्यदेव श्री कलापूर्णसूरि म. के प्रति 1वैसे भी पहले से आकर्षण था ही क्योंकि परम तारणहार पूज्य गुरुदेवश्री (पं. श्री अभयसागरजी म.) के ये अत्यन्त ही निकट के सम्बन्धी, साधक, नवकार महामंत्र के परम आसक, उपासक एवं चाहक हैं । अतः यह चातुर्मास पालीताना में करना सुनिश्चित हुआ तबसे ही आनन्द एवं गलगली प्रारम्भ हो गई थी और आज तो वह आनन्द हृदय के चारों किनारों पर लहरा रहा है। क्योंकि, गत चातुर्मास में पूज्यश्री की अत्यन्त ही सुन्दर निकटता का आनन्द लिया. जीवन में सर्व प्रथम बार ही पूज्यश्री का सम्पर्क हुआ, परन्तु ठोस हुआ । जब जब भी पूज्यश्री की वाचना में गया, मेरे परम तारणहार पूज्य गुरुदेवश्री के स्मरण में तन्मय हुआ हूं ।। पूज्य गुरुदेवश्री के जीवन में तीन तत्त्व स्पष्टतः दृष्टिगोचर होते थे - (१) श्री नवकार महामंत्र की साधना । (२) साधु सामाचारी (व्यवहार धर्म की चुस्तता) की आराधना (३) जिन-भक्ति की उपासना पूज्यश्री की निश्रा में कभी भी कोई सामूहिक आयोजन हो चाहे वह व्याख्यान का वाचना का विशेष बैठक का हो GOOGrna
SR No.032619
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 03 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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