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________________ 'मैं रोगी हूं' ऐसा भान भी भगवान के बिना नहीं होता । शरीर का रोग हमें अखरता है, परन्तु शरीर में बैठी आत्मा को जो रोग है, उसका विचार तक नहीं आता । विचार आये तो भगवान के पास आरोग्य मांगने का मन हो न ? ___'प्रभु ! प्रसन्न हो और मुझे ये तीन पदार्थ अवश्य दें : आरोग्य, बोधि और समाधि ।' इन तीनों में गणधरों ने पूर्ण मोक्ष-मार्ग मांग लिया । गणधरों की यह मांग है । आप की मांग क्या है ? भगवन् ! अकेला हूं । एकाध शिष्य मिल जाये तो काम हो जाये । ऐसा कुछ नहीं मांगते न ? गृहस्थों की अपने क्षेत्र की इच्छाएं होती है। यहां भी इस प्रकार की इच्छाएं हो सकती हैं । ऐसी इच्छाएं हों तो समझें - यहां आकर हम नया संसार खड़ा कर रहे हैं । * निष्णात के कथनानुसार औषधि न लें तो रोग तो नहीं मिटेगा परन्तु उल्टा रोग बढ़ जायेगा । यहां भी प्रत्यपाय संभव हो सकता है । कालग्रहण आदि में गलती हो जाये तो कई बार पागलपन, भूत-पिशाच-डाकिनी का उपद्रव आदि होते प्रतीत होते हैं, गुरु चाहे कुछ न करें परन्तु आसपास के देव थोडे ही क्षमा करेंगे ? ___ एक साध्वीजी ने 'गर्म पानी से कुष्ठ रोग हुआ है।' यह कहा तब शासनदेवी ने उसकी खबर ले ली । बाद में साध्वीजी ने अपनी भूल स्वीकार कर ली । __ गर्म पानी से रोग आता है कि जाता है ? इस समय हैजे (कोलेरा) के वातावरण में तो डोक्टर विशेष तौर पर उबाला हुआ पानी पीने की सलाह देते हैं । (१२६ 000wwwwwwwwwwwwww कहे कलापूर्णसूरि - ३)
SR No.032619
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 03 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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