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________________ होगा, भागेगा । यह प्रथम अवस्था है । मन को स्थिर बनाने के लिए वर्षों तक सतत साधना करनी पडती है। मन मोह के अधीन है । अतः वह कूदता ही रहेगा । मन रूपी यह बन्दर कूदाकूद न करे तो ही आश्चर्य है । धारणा के द्वारा तनिक मन स्थिर बनने के पश्चात् तनिक स्थिरता आने लगती है। तत्पश्चात् दूसरी अवस्था आती है - यातायात । कुछ समय तक स्थिर रहता है और पुनः अस्थिर हो जाता किसी महात्मा ने यदि ध्यान में स्थिरता प्राप्त की हो तो समझें कि वर्षों की साधना ही नहीं, कदाचित् जन्मान्तर की साधना होगी। ये सभी पदार्थ अभ्यास के बिना समझ में नहीं आते । यह पुस्तक पढ़ने से बहुत-बहुत जानने को मिलता है, मानो साक्षात् आचार्यश्री हमें कहते हों ऐसा ही आभास होता है । - साध्वी दृष्टिपूर्णाश्री पुस्तक पढ़ने से हृदय भावार्द्र बन गया है । __- साध्वी चारुनिधीश्री पुस्तक पढ़ने पर प्रभु को प्रार्थना करने का मन हुआ । पूज्य आचार्य भगवान में जैसे गुण हैं, वैसे हम में भी उत्पन्न हों । - साध्वी चारुविरतिश्री (कहे कलापूर्णसूरि - ३00amasoomoooooooooo १२१)
SR No.032619
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 03 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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