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________________ Messsamsue Home पालिताना, वि.सं. २०५६ ३१-७-२०००, सोमवार श्रा. कृष्णा अमावस * जिसके हाथों दीक्षा हुई हो वह अपनी शक्ति दीक्षित में स्थापित करे । भगवान जैसे दीक्षा-दाता हों वहां कितनी शक्ति प्रकट होगी ? भगवान ने इस तीर्थ में शक्ति डाली है, वह आज भी कार्यशील है। (१) जिज्ञासा : 'भयवं किं तत्तं ?' गणधरों का यह प्रश्न भीतर की उत्कट जिज्ञासा व्यक्त करता है । यह जिज्ञासा भी भगवान के समक्ष विनयपूर्वक, प्रदक्षिणा एवं वन्दनपूर्वक प्रस्तुत की है। प्रश्न भीतरी जिज्ञासा प्रकट करता है । जिज्ञासा के बिना प्रश्न हो ही नहीं सकता । जिज्ञासा के बिना आप किसी को ज्ञान देते हैं अर्थात् भूख के बिना आप उसे भोजन कराते हैं । ग्राहक की मांग के बिना यदि आप उसे माल देते हो तो आपको भाव घटाना पड़ेगा । एक प्रश्न से समाधान नहीं हुआ तो गणधरों ने दूसरा तथा तीसरा प्रश्न भी पूछा और उस में से उन्हें त्रिपदी मिली । त्रिपदी ध्यान की माता है। उसमें से द्वादशांगी का जन्म हुआ । उत्पत्ति, व्यय एवं ध्रौव्य तीन मूल बीज हैं, जिनमें से समग्र ज्ञान का जन्म |११० Dolanooooooooooo0 कहे कलापूर्णसूरि - ३
SR No.032619
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 03 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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