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________________ पर न रहें - मैं ज्ञानदशा में जग गया हूं, मुझे कोई चिन्ता नहीं है - ऐसे मिथ्याभिमान में न रहें । शहाबुद्दीन घोरी की तरह वे बार-बार चढाई करेंगे । भरोसे पर रहनेवाले कितने ही "पृथ्वीराज' यहां पराजित हो गये हैं। विशेषतः उपवास का पारणा हो, अपना चित्त व्यग्र हो, तब क्रोध आदि कषाय तुरन्त ही आक्रमण करते हैं । आपकी बात नहीं करता, मुझ पर भी आक्रमण करते हैं । वासक्षेप प्राप्त करने के लिए अधिक भीड़ हो गई हो, मन व्यग्र हो, तब मैं तनिक कषाय-ग्रस्त हो जाता हूं। राग-द्वेष एवं विषय-कषायों से ग्रस्त होकर हम एक नहीं, अनन्त जीवन हार गये हैं । अब यह जीवन इस प्रकार व्यर्थ नहीं खोना है, इतना निश्चित कर लो । सफलता के सात सूत्र १. व्यसनों से मुक्ति २. व्यवसाय में नीति ३. व्यवहार में शुद्धि ४. व्यवस्था की शक्ति ५. वक्तृत्व में नमस्कृति ६. प्रतिकूलता में धृति ७. परमात्मा की भक्ति (४८४0000000000000000000 कहे कलापूर्णसूरि - २)
SR No.032618
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 02 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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