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________________ चोरों का वह सरदार जंगल में योगी को देखने के लिए योगी के पास आया । ऐसे महान योगी के विषय में अन्य तो क्या विचारें । सुन कर आश्चर्य होगा कि ऐसे योगी भी माया और मान से घिर सकते पुष्प में सुगन्ध प्रकट होती है तब उसे फैलानेवाला वायु तैयार ही होता है । मानव में गुण प्रकट होते हैं तब उन गुणों की सौरभ फैलती ही होती है। इसके लिए किसी प्रकार के प्रचार की आवश्यकता ही नहीं पड़ती ।। उनके गुणों की सुगन्ध पिता के पास पहुंची । वे उन पुत्रमुनि के पास गये । प्रशंसा करने पर कुछ फूलकर उन्होंने कहा, "मुझे क्या पूछते हो ? मेरे प्रभाव के विषय में जानना हो तो मेरे इस शिष्य को पूछो । अन्य के मुंह से अपनी प्रशंसा कराने की इस वृत्ति से माया मृषावाद से वे योगी हार गये । आत्मा के मुख्य दो गुणों को (सम्यक्त्व एवं चारित्र) रोकने वाला मोहनीय मजबूत बैठा हो तब तक ज्ञानावरणीय का चाहे जितना क्षयोपशम हो गया हो, चाहे कोई नौ पूर्व तक का अध्ययन कर ले, परन्तु उसका संसार यथावत् रहेगा । दूसरे को रोकने के लिए एक ही कर्म-प्रकृति है, परन्तु दर्शनगुण को रोकने के लिए सात प्रकृति हैं । ___ 'मोह-पराजय' शीर्षक नाटक पढ़ो तो इसका स्वरूप एकदम स्पष्ट रूप से ध्यान में आयेगा । उपमिति पढ़ो तो भी ध्यान आयेगा । * कषाय भी अत्यन्त शक्तिशाली है । जब वे आते हैं तब सपरिवार आते हैं । आगे किसी को करते हैं, दूसरे पीछे छिपे रहते हैं । उदाहरणार्थ अहंकार पीछे रहकर क्रोध को आगे करता जब तक हम सोते रहेंगे तब तक ही कषायों के ये चोर जीतते रहेंगे । सोना अर्थात् अज्ञान (अविद्या) दशा में सोना । जागना अर्थात् ज्ञान-दशा में रहना । प्रारम्भ में आप क्रोध आदि को हटा दो तो भी भरोसे कहे कलापूर्णसूरि - २wooooooooooooooooos ४८३)
SR No.032618
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 02 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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