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________________ रोया जा सके और सब कुछ कहा जा सके । कलिकाल में चाहे भगवान नहीं हैं, परन्तु गुरु हैं । गुरु में भगवद् भक्ति उत्पन्न करके भगवान के जितना ही लाभ प्राप्त किया जा सकता है । पूज्यश्री के अनेक भक्त हैं। पूज्यश्री का सान्निध्य पाकर नास्तिक भी कैसे आस्तिक बन जाते हैं ? यह जानने योग्य है । पूज्यश्री को एक भाई ने कहा, 'नवकार गिनने का अर्थ है, मुसीबत पैदा करना ।' पूज्यश्री ने उसे केवल बारह नवकार गिनने का संकल्प, नियम दिया । वह आज पांच माला गिनता है और कहता है 'अब मैं नवकार कदापि नहीं छोडूंगा ।' यह है पूज्यश्री का सहज प्रभाव ! पूज्य गुरुदेव की भक्ति से भगवान अवश्य प्रसन्न होंगे और जीवन उज्जवल बनेगा । गुरुदेव ने जिस पद पर मुझे आसीन किया है, उस पद के लिए मैं योग्य बनूं - चतुर्विध संघ के समक्ष प्रभु से मैं यह प्रार्थना करता हूं। पूज्य नूतन पंन्यासजी श्री कल्पतरुविजयजी महाराज छ: द्रव्यों में जीव-अजीव दो द्रव्य गतिशील हैं । छठा काल द्रव्य विशिष्ट प्रकार से गतिशील है । उसे कोई रोक नहीं सकता । पानी के प्रवाह को रोका जा सकता है, परन्तु समय के प्रवाह को रोका नहीं जा सकता । समय से परे बन सकते हैं, परन्तु समय को रोका नहीं जा सकता । सूर्योदय से छः घंटो का समय व्यतीत हो गया है, कदाचित् यह विचार आता होगा, परन्तु जीवन का कितना समय व्यतीत हो गया है, उसका विचार नहीं आता । गुणों, धन एवं पदार्थों का संग्रह होता है, परन्तु समय का संग्रह नहीं किया जा सकता । * गौतम अर्थात् भगवान का प्रकृष्ट वचन । (गौ = वाणी, तम = उत्तम, गौतम = उत्तम वाणी) इस अर्थ में 'समयं गोयम मा पमायए !' इस सूत्र का अर्थ विचारणीय (२२ 000000000000000000 कहे कलापूर्णसूरि - २)
SR No.032618
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 02 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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