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________________ giri Peterge RAN - ११ दीक्षा प्रसंग, भुज, वि.सं. २०२८, माघ शु. १४ १६-४-२०००, बुधवार वै. कृष्णा-१ : पालीताना * द्वादश-अंग सज्झाय करे जे... । तीर्थ का उद्देश्य है कि मिथ्यात्वी मन्द मिथ्यात्वी बनें । वे क्रमशः अपुनर्बंधक, सम्यक्त्व, देशविरति, सर्वविरति, केवलज्ञान, मोक्ष आदि प्राप्त करे । तीर्थ सदा जीत में है, मोह सदा हार में है । छ: महिने में कम से कम एक जीव मोक्ष में अवश्य जाता है और एक माह में सर्वविरति, १५ दिनों में देशविरति और ७ दिनों में सम्यक्त्व प्राप्त करता ही है । यह क्रम अनादिकाल से चालु है । उपाध्याय पांचो प्रकार के स्वाध्याय में रममाण होते हैं, उन्हें बारह अंग कण्ठस्थ होते हैं । हमारे जीवन में स्वाध्याय कितना है ? प्रमाद हमारा समय खा रहा है ऐसा लगता है ? मोक्ष होने वाला है, यह जानने वाले तीर्थंकरो आदि के लिए तप आदि आवश्यक हैं तो क्या हमारे लिए आवश्यक नहीं है ? क्या मोक्ष वैसे ही मिल जायेगा ? क्या मोक्ष की भूख लगी है ? जिसे भूख लगी होगी वह (कहे कलापूर्णसूरि - २wwwwwwwwwwwco m १४९)
SR No.032618
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 02 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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