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________________ उपाध्याय अर्थात् चित्कोश ! ज्ञान का खजाना ! उपाध्याय नौ प्रकार की ब्रह्मगुप्त से गुप्त होते है । उपाध्याय स्याद्वाद शैली से तत्त्वोपदेश देने वाले होते हैं । वे राजहंस की तरह आत्म-सरोवर में मग्न होते हैं । वे वृषभ की तरह गच्छ का उत्तरदायित्व रूपी बोझ उठाने वाले होते हैं । * वृषभ तुल्य साधुओं से समुदाय सुशोभित होता है । पू. प्रेमसूरिजी के साथ विहार में हमने देखा ५५-६० ठाणे थे । मार्ग में गांवों में से वृषभ साधु रोटियाँ और गुड वहोर कर ते । - यहां तो चार से पांच घड़े पानी के लाने पड़े तो मुंह चढता है । सचमुच तो व्यवस्थापक को कहकर रखना चाहिये 'कुछ भी काम हो तो मुझे कह देना ।' दूसरा कोई कार्य न करे तो ? इस प्रकार उस की दया सोचने की आवश्यकता नहीं है । मेरा क्या कर्तव्य है ? यह देखना है । 8 १४८ सम्यग् - दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्ग : तत्त्वार्थ के इस प्रथम सूत्र में नवकार छिपा हुआ है, आओ हम खोज करें। 'मार्ग' पद से अरिहंत ( ' मग्गो' अरिहंत का विशेषण है ।) 'मोक्ष' से सिद्ध भगवंत । ' चारित्र' से आचार पालक - प्रचारक आचार्य भगवान् । 'ज्ञान' से ज्ञानदाता उपाध्याय भगवान् । 'दर्शन' से श्रद्धापूर्वक संसार - त्याग करने वाले मुनिगण । 'सम्यग् ' से भक्तिपूर्वक किया गया नमस्कार (नमः) सूचित होता है । १८८८ कहे कलापूर्णसूरि २
SR No.032618
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 02 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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