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________________ * छ: काय जीव अर्थात् भगवान का परिवार ! भगवान कहते हैं - मैंने इन सबको अपना परिवार माना है, उस प्रकार आपको भी मानना है। उनकी देह भिन्न है, इतने मात्र से उन्हें पराया नहीं माना जा सकता । __ इस प्रकार की शिक्षा प्रदान करनेवाले अरिहंतो ने दूसरों को भी छ: जीवनिकाय के प्रेमी बनाये । * अरिहंत भगवान महागोप हैं, महामाहण हैं, निर्यामक एवं सार्थवाह हैं । अथवा तो उन्हें किस की उपमा दी जाये ? आकाश किसके जितना है ? आकाश जितना है । राम-रावण का युद्ध किसके समान है ? राम-रावण के समान है। भगवान किसके समान है ? भगवान के समान हैं । सात चक्रों के ध्यान का फल मूलाधार के ध्यान से वासना नष्ट होती है, प्राकृतिक चेतना का उत्थान होता है। स्वाधिष्ठान के ध्यान से - भय, द्वेष, खेद नष्ट होता है, अभय, अद्वेष, अखेद प्रकट होता है । मणिपूर के ध्यान से संशय - विचार नष्ट होते है, श्रद्धा - विवेक प्रकट होते है । अनाहत के ध्यान से संकल्प - विकल्प नष्ट होते है, प्रेम प्रकट होता है। विशुद्धिचक्र के ध्यान से मूर्छा नष्ट होती है, अद्वैत प्रकट होता है । आज्ञाचक्र के ध्यान से 'अहं-मम' नष्ट होते है, नाहं न ममजन्य आनन्द प्रकट होता है। सहस्रार के ध्यान से शिव-शक्ति का मिलन होता है । (कहे कलापूर्णसूरि - २aamsoomoooooooooon ११५)
SR No.032618
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 02 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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