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________________ है कि जैसे ही आप झुके कि तुरन्त ही पाप जल गये समझें । * प्रीति-अनुष्ठान किसे कहते हैं ? जब-जब अन्य कोई भी अनुष्ठान हों, तब-तब उन्हें छोड़कर अरिहंत आते ही उनमें मन लग जाये वह प्रीति-अनुष्ठान हैं । जहां रुचि हो वहां क्या नींद आयेगी ? टेलिफोन पर जब आप महत्त्वपूर्ण बात सुन रहे हों तब क्या नींद आयेगी ? नींद अनादर की सूचक है । इच्छा न हो फिर भी नींद आ जाये, यह बात सत्य है, परन्तु उसके लिए सावधानी तो रखनी चाहिये न ? यदि सावधानी प्रबल हो तो नींद क्यों आयेगी ? * भगवान जन्मजात योगी हैं । यम-नियम आदि का पालन किये बिना ही प्रभु को सहज रूपमें योग सिद्ध हुआ होता है। ___ जन्म होते ही प्रभु को तीनों लोकों के इन्द्र अभिषेक करते हैं, प्रणाम करते हैं, फिर भी उस समय भी प्रभु अलिप्त होते हैं, मान-सम्मान से वे फूलते नहीं हैं । * 'आंगी सुन्दर है' यह आप कहते हैं, परन्तु 'भगवान सुन्दर हैं' क्या यह लगता है ? आप आंगी देखने जाते हैं कि भगवान के दर्शनार्थ जाते हैं ? यद्यपि आंगी का दर्शन भी अन्त में तो भगवान के दर्शन की ओर ही ले जाता है, क्योंकि आंगी भी आखिर किस की हैं ? भगवान की ही हैं न ? * आदिनाथ भगवानने वज्रनाभ चक्रवर्ती के भव में दीक्षित होकर चौदह पूर्व का अध्ययन किया था । वह ज्ञान वे सर्वार्थसिद्ध में ले गये थे और वह ज्ञान भगवान के भव में भी था । इस ज्ञान के आधार पर ही भगवान ने लोगों को शिक्षा प्रदान की थी। भगवान को इसमें दोष नहीं लगता, क्योंकि तभी भगवान राजा थे । लौकिक व्यवहार में कुशल बने बिना लोकोत्तर विद्या में कुशल बना नहीं जा सकता । * श्रावक-श्राविका वहोराने आदि में अपनी मर्यादा नहीं चूकते तो हम अपनी मर्यादा से च्युत कैसे हो सकते हैं ? संघ का हम पर ऋण तो है न ? क्या आपको उस ऋण का कदापि ध्यान रहता है ? (११४ 8000000000000000000 कहे कलापूर्णसूरि - २)
SR No.032618
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 02 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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