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________________ दशम अध्याय २३ रुद्र-र +उ++र। र=अग्निबाज; उसहस्रार-स्थितिका स्थान, क्षमा; द= कामपुरमें योनि; र= अग्निबीज; तब ही हुआ, जिसमें ( जिस आधारमें ) कामाग्नि और क्षमाग्नि पूर्णभावसे प्रकाशित है, वही 'रुद्र' है। इन रुद्रोंके भीतर मैं शंकर (शं अर्थात् जो मङ्गल करता है ) अर्थात् जो केवल मङ्गल स्वरूप; वही मैं हूँ। __"वित्तेशो यक्षरक्षसाम्"। वित्त कहते हैं पालिनी-शक्ति को। यह चार अंशों में विभक्त हो करके प्रथमांश पृथिवीमें, द्वितीयांश जलमें, तृतीयांश अनलमें और चतुर्थाश साधु पुरुषमें मिलकर प्रकाशिता है । इसीका नाम पद्मा, लक्ष्मी, भूति, श्री, श्रद्धा, मेधा, सन्नति, विजिति, स्थिति, धृति, सिद्धि, स्वाहा, स्वधा, नियति और स्मृति है। इस जगत्में भला व बुरा जिस चीजको तुम देखोगे वही तुमको मोहित करेगी। यह जो मोहिनी शक्ति है, वही विष्णुमाया है। सबके भीतर रह करके, सबको प्रकाश करके, स्वयं प्रकाश होती है इसलिये इसका आना जाना किसीके समझमें या देखने में नहीं आता। इसलिये इसको 'अलकापुर' की अधिष्ठात्री देवी कहते हैं, अर्थात् परमाणु से लेकर माया पर्य्यन्त जितने पुर हैं, यह सत्त्वगुणा महाशक्ति उन सब पुरकीही भूषण स्वरूपा है, (अ भूषित करना)। दिक्पाल (दिक अर्थात् जिसको पा जिन सबको निर्णयमें लाया जा सकता है, उन सबका पालनकर्ता ) कुवेर इस देवीका रक्षक है। यह देवी कुवेर की सम्पत्ति स्वरूप है। इसलिये कुवेरका नाम वित्तेश है। मायाके इस खेलकी अवस्था भी मेरी ही मीतर होती है, इसलिये वित्तेश भी मैं हूं। ___ “वसूनां पावकश्चास्मि"। "वसु” कहते हैं प्रकाशकको, अर्थात् जो अपने तेजसे दूसरेको तेजस्वी करते हैं। यह वसु ८ हैं; यथाभव, ध्रुव, सोम, विष्णु, अनल, अनिल, प्रत्युष और प्रभव। पावक
SR No.032601
Book TitlePranav Gita Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanendranath Mukhopadhyaya
PublisherRamendranath Mukhopadhyaya
Publication Year1998
Total Pages378
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith
File Size26 MB
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